पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/७

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चार बात को लेकर वह उच्च कलाकारों की श्रेणी से कुछ नीचे उतार दिया जाता है। इसी भय के कारण आज के अनेक विधार्थी अल्पआ में, मंच पर अवतरित होने से पूर्व सितार के प्रत्येक अंग का मन-माना अभ्यास जल्दी में करते हैं। उनके सामने गति (Speed) बढ़ाना लक्ष्य रहता है, अंत: लय और ताल की तीव्रता राग और भाव की हत्या कर देती है; श्रोता के मुख से 'आह' की जगह उनके कमाल पर 'वाह" निकालता है। सङ्गीत सम्मेलन की जो भूमि सतन्मयी श्रोताओं की अवस्थ का उनके पद चिन्हों दर्शाया अपने हृदय पर अंकन कर लेती थी, वहाँ आज मूंगफली के छिलके और सिगरेट-बीड़ी के टुकड़े दृष्टि गत होते हैं। इन सब बातों की गहराई में जाने का अवकाश नहीं। सङ्गीत की भावमयी अवस्था में डूबने वाले श्रोताओं को उत्पन्न करने के लिए हमें तदनुकूल कलाकार उत्पन्न करने होंगे। सितार वादन के क्षेत्र में सही दिशा प्रस्तुत करने के लिए साहित्य का अभाव है। इसी कारण स्कूल , कालेजों के सितार शिक्षक व्यवस्थित शिक्षा न देकर विधार्थियों को कोर्स के अनुसार रागों में आतें और झाले सिखा देते हैं।