पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/८३

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६२ सितार मालिका फिर उसकी जाति व वादी स्वर के आधार से उसका स्वर-विस्तार करने का प्रयत्न करिये । जब राग आपके मस्तिष्क में खूब जम जाय, तो इसी आधार से राग के स्वरों को इस प्रकार मिलाइये कि राग का रूप ज्यों का स्यों रहा आये और आपके 'दिड दा दिड़ दाड़ा' आदि सोलह के सोलह बोल इस प्रकार बजने लगें कि सुनने में मधुर और आकर्षक हों। यदि किसी स्थान पर आपको राग का स्वरूप कुछ बिगड़ा सा मालूम दे अथवा किसी एक स्वर से किसी दूसरे स्वर तक लम्बी और कर्ण-कटु छलांग सी प्रतीत होती हो, तो उसे करके सुन्दर बनाने का प्रयत्न करिये। प्रारम्भ में इस प्रकार की रचनायें निर्माण करने में आपको कुछ झंझट और झिझक अवश्य प्रतीत होगी; परन्तु कुछ ही दिनों के अभ्यास के बाद आप स्वयं यह अनुभव करने लगेंगे कि यह झिझक व्यर्थ की थो और किसी भी राग में गते बनाना इतना कठिन नहीं है जितना कि आपने उसे समझा था। इन्हीं बोलों से कभी-कभी ऐसी भी रचनाएँ की जाती हैं, जो कि बारहवीं मात्रा के स्थान पर 'सम' से ही प्रारम्भ होती हैं। जब ऐसी रचना करनी हो तो इन बोलों को थोड़ा मा बदल दिया जाता है। जैसेः दा दिड दा डा दा दिड दा डा २ दा दा डा, दिड दा दिड दा ड़ा X O ३ श्राप इसे यूँ समझिये कि जो अब तक आपकी १३-१४-१५ और १६ मात्राओं पर मिजराबों के बोल थे, उन्हें ही दो बार बजाकर आठ मात्राएँ पूरी की। बाकी आठ मात्राओं के लिये, अबतक की जो भी आठ मात्राएँ थी, उन्हें ही ज्यों का त्यों रख दिया अर्थात् १३-१४-१५-१६-१-१-३-४-५-६-७ और आठवीं मात्रा के बोलों को ज्यों का त्यों रखा। शेष ६-१०-११-१२ के स्थान पर १३-१४-१५-१६ बजादी । देखियेः- दिर दा दिर दा रा दा दा रा दिर दा दिर दा रा दा दा रा पहिली गत:- १२ १३ १४१५१६ ५ ६ दूसरा ढांचा भी यहां दिया जा रहा है:- दा दिर दा रा दा दा रा दिर दा दिर दा रा, दा दिर दा रा ६ S ६ समान बोल असमान