पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१०२

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सिद्धान्त और अध्ययन जोकरुचि से मेल खाजाती है वहां प्रभाववादी आलोचना और शास्त्रीय आलोचना में भेद नहीं रहता है। . इस लेख के अन्त में हम साररूप से काव्य के हेतुओं के सम्बन्ध में कविवर भिखारीदासजी का एक छन्द देते हैं :---- 'सक्ति कवित्त बनाइने की जेहि जन्म नक्षत्र में दीन्हि विधाते । काव्य की रीति सिखी सुकवीन्ह गों ___ देखी सुनी बहु लोक की बातें ॥ दास है जामें इकन ये तीनि ____ बने कविता मनरोचक तात। एक पिना न चले रथ जैसे धुरन्धर सून की चक निपाते।' - भिखारीदासकृत काव्यनिर्णय (पृष्ठ ५) : -