पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/११

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विशेष महत्ता दी (गुणों को भामह ने भी माना है किन्तु उन पर इतना बल नहीं दिया है जितना कि दण्डी ने) और रीति-सिद्धान्त के लिए द्वार खोला । दण्डी ने रीति को मार्ग कहा है और भामह की भाँति ही उदार दृष्टिकोण रखा है । भामह की उदारता कुछ उपेक्षापूर्ण है क्योंकि उन्होंने वैदर्भी और गौडीय के विभाजन को गतानुगतिकन्याय (भेडियाधासान) कहा है (काव्या- लङ्कार, ११३२) किन्तु दण्डी ने ही पहले-पहल वैदर्भी और गौडीय रीतियों का सम्बन्ध दश गुणों से जोड़ा है। दण्डी ने वैदर्भी में दश गुण माने हैं। गौडी में अग्राम्यता, अर्थव्यक्ति, औदार्य और समाधि को छोड़कर शेष गुणों का वपरीत्य रहता है, जैसे श्लेष का वैपरीत्य शैथिल्य और प्रसाद का व्युत्पन्न इत्यादि है।' अन्य अलङ्कारवादी :-संस्कृत समीक्षा-शास्त्र में अलङ्कारवादियों की पर्याप्त प्रधानता रही है । रस को माना तो सभी प्राचार्यों ने है किन्तु अलङ्कार- वादियों ने रस को स्वतन्त्र न करके उसको रसवत् प्रादि अलङ्कारों के अन्तर्गत किया है। इसी प्रकार ध्वनिवादियों ने असंलक्ष्यक्रमव्यङ्गयध्वनि के अन्तर्गत रस का वर्णन किया है। भामह ने अपने काव्यालङ्कार (३।६) में 'रसवहर्शितस्पष्ट श्रङ्गारादि रसादयम्' कहा है । भामह और दण्डी के पश्चात् उद्भट (आठवीं शताब्दी) ने भी अपने 'काव्यालङ्कार-सार-संग्रह' में रस को रसवदालङ्कार के अन्तर्गत रखा और रसों की संख्या ६ मानी और ४१ अलङ्कारों का वर्णन किया है । उद्भट के 'काव्यालङ्कार-सार-संग्रह' पर प्रतिहारेन्द्र राज की टी का बहुत महत्त्वपूर्ण है । रुद्रट (नवीं शताब्दी) के ग्रन्थ का भी नाम 'काव्यालंकार' है । उन्होंने भी रसों को आवश्यक मानते हुए अलङ्कारों को महत्ता दी है और अलङ्कारों के मूल तत्त्वों का (वास्तव, प्रौदार्य, अतिशय और श्लेष) विवेचन कर उनमें तारतम्य और वर्गीकरण का नया प्रयास किया है । रुद्रट ने नौ रसों के अतिरिक्त प्रेयस ( यात्सल्य ) नाम का दशवाँ रस माना है। अलङ्कार- सम्प्रदाय का विकास तो रुद्रट के बाद भी होता रहा है किन्तु उन प्राचार्यों का प्रयास अलङ्कारों की संख्या बढ़ाने या परिभाषाओं में हेर-फेर करने तक ही सीमित रहा । कुछ प्रयास वर्गीकरण की ओर भी बढ़ा । अलङ्कार-सम्प्रदाय । के अन्तर्गत रुय्यक (१२वीं शताब्दी) के 'अलङ्कार-सर्वस्व', हेमचन्द्र के 'काव्या- नुशासन' और वाग्भट के 'वाग्भटालङ्कार' (दोनों ही १२वीं शताब्दी के हैं और .... भामह और दण्डी में कौन पूर्व का है और कौन पश्चात् का, इस .. सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है।