पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१३७

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१०८ सिद्धान्त और अध्ययन परिपाक में सहायक होते हैं। . 'भाषा, भूषन, भेष, जहँ, उलटेई करि भूल । उत्तम मध्यम अधम कहि, त्रिविधि हास्य-रस मूल ।। -~-देवकृत शब्दरसायन (तृतीय प्रकाश, पृष्ठ ३६) हास्य श्रृङ्गार का सहायक तो है ही कभी कभी वीर का भी पोषक होता है, किन्तु इसका स्वतन्त्र अस्तित्व भी है । इसका मूल किसी प्रकार की विकृति में है-'वागादिवैकृतश्चेतीविकासो हास इप्यते। हास्य __वह विकृति चाहे किसी मनुष्य में हो और चाहे उक्ति में हो, इसकी विचित्रता चित्त में प्रसन्नता लाती है, जो हँसी द्वारा प्रकट होती है। बर्गसन (Bergson) के मत से मनुष्य जहाँ अपनी स्वतन्त्रता से काम न कर मशीन की भाँति काम करता है वहीं हास्य का विषय बन जाता है । यह भी एक विकृति का ही रूप है। विकृति या उलटेपन को हम व्यापक अर्थ में लेंगे। जो प्रत्याशित (Expected) हो उसके विपरीत होना ही उलटापन है । यह वेश-भूषा, चाल-ढाल में भी हो सकता है। शब्दों में भी जो हँसी-मजाक होता है वह प्रत्याशित से विलक्षण होता है। इसमें हास्य के आश्रय में एक प्रकार की श्रेष्ठता का भाव रहता है। विकृति जहाँ अनिष्ट की सीमा तक नहीं पहुँचती वहीं तक हास्य रहती है, उस सीमा का उल्लङ्घन करने पर वह करुण में परिणत हो जाती है । जिन लोगों में संवेदना की मात्रा बढ़ी हुई होती है वे दूसरे की विकृति पर नहीं हँसते हैं । एक बदमाश लड़का किसी के गिरने में थोड़ी-बहुत चोट लग जाने पर भी हँसेगा किन्तु सज्जन नहीं । सज्जन तो तभी हँसेगा जब वह विकृति हानिकारक न हो। मेकड्यूगैल का कथन है कि हास्य मनुष्य की अत्यधिक संवेदनशीलता को सन्तुलित रख उसे मानसिक पीड़ा से बचाता है। मेरा विचार यह है कि विकृति से जो भयानक स्थिति उपस्थित होजाती है किन्तु जब वह अनिष्ट की सीमा तक नहीं पहुँचती तब एक प्रकार का सुख होता है, वही हास्य में परि- गत हो जाता है। हास्य प्रत्याशित से विलक्षण एक सुखद वैचित्र्य को उत्पन्न कर हमारी प्रसन्नता का कारण होता है। इसके अनुभावरूप में आँख कुछ बन्द हो जाती है, मुंह खुल जाता है और थोड़ी आबाज भी होती है । शिष्ट लोगों के हँसने में कम-से-कम आवाज होती है । वे केवल मुस्कराते ही हैं, इसीलिए हास्य की श्रेणी बाँधी गई है-श्रेष्ठों में स्मित और हसित, बीच की श्रेणी के लोगों में विसित और अविहसित और निम्न कोटि के वर्ग में १. साहित्यदर्पण (३३१७६)