पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१६९

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काव्य के वयं-रस-दोष अदिव्य के लिए शोक, हास, रति और अद्भुत विशेष रूप से बतलाये गये हैं। इनका वर्णन अवतारादि दिव्यादिव्य के सम्बन्ध में भी हो सकता है। देव- ताओं की रति का (विशेषकर सम्भोगशृङ्गार का)वर्णन करना रस-दोष माना गया है । 'कुमारसम्भव' में यह दोष पूर्णतया पाया जाता है। नायकों के चार प्रकार : नायकों के एक दूसरे आधार पर चार विभाग किय गये हैं । ये चार प्रकार उनके अनुकूल रस सहित नीचे दिये जाते हैं :---- १. धीरोदात्त नायक नीतिवान्, गम्भीर, उदार, स्थिर, दृढ़वत और क्षमावान् होता है। श्रीरामचन्द्रजी, महाराज युधिष्ठर, महात्मा बुद्ध आदि इसके उदाहरण हैं । इस प्रकार के नायकों के लिए वीररस विशिष्ट है। २. धीरोद्धत नायक मायावी, चपल, छली, आत्मश्लाघापरायण, अहङ्कारी और शूर होता है । रावण, परशुराम, भीम आदि इसके उदाहरण हैं। इस प्रकार के नायकों के लिए रौद्ररस उपयुक्त है। ३. धीरललित नायक निश्चिन्त, विलासी, कलासक्त, सुखी और कोमल स्वभाव का होता है । महाराज दुष्यन्त और उदयन इसके उदाहरण हैं। इस प्रकार के नायकों के लिए शृङ्गाररस उपयुक्त है। ४. धीरप्रशान्त नायक शान्त प्रकृति का होता है और उसमें नायक के सामान्य गुण (त्याग, कर्मनिष्ठता, कुलीनता, श्रीसम्पन्नता, शीलपरायणता आदि) विद्यमान होते हैं। ऐसा नायक क्षत्रिय नहीं हो सकता क्योंकि उसमें शान्ति का प्रभाव होता है। सात्विक-वृत्ति-प्रधान ब्राह्मण अथवा वैश्य ऐसा नायक हो सकता है । 'मालती-माधव' में माधव और 'मृच्छ कटिक' में चारुदत्त इसके उदाहरण हैं। इस प्रकार के नायकों के लिए शान्तरस उपयुक्त होता है । विशेष : इन सब में धीर गुण लगा हुअा है । हमारे यहाँ नायक को इतनी श्रेष्ठता दी गई है कि उसमें कम-से-कम धीरता का गुण होना आवश्यक है। . इन प्रकृतियों के प्रतिकूल वर्णन करना रस-दोष माना गया है, जैसे साहित्य- दर्पणकार ने श्रीरामचन्द्र जी का बालि को पेड़ की प्रोट में मारना प्रकृति-विरुद्ध दोष बतलाया है। ___यह विभाजन उस काल की संस्कृति के अनुकूल था। आज कल वर्णभेद से . गुण निश्चित नहीं किया जाता है। इस विभाजन में सामान्य ( Type) की ओर प्रवृत्ति अधिक है किन्तु फिर भी हर एक नायक अपनी विशेषता रखता है । ... भारतीय समीक्षा में दोषों का वर्णन बिल्कुल पत्थर की लीक के रूप में नहीं रक्खा गया है। वह औचित्य के अनुकूल है । दोषों के वर्णन के . साथ उनका परिहार भी बतलाया गया है। ..