पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१७१

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काव्य के वयं-विरोध-परिहार १३५ दुष्यन्त का क्रोध-भाव · जाग्रत किया था। यहाँ रौद्र के बीच में आजाने से वियोगशृङ्गार और वीर का विरोध शमन हो गया था। एक मनोवृत्ति से दूसरे में ले जाना सहज कार्य नहीं है। शकुन्तला नाटक में कालिदास ने इस कार्य को बड़ी कुशलता से निभाया है। अन्य प्रकार :-विरोध के शमन के और भी प्रकार हो सकते हैं, वे नीचे दिये जाते हैं :- 'स्मर्यमाणो विरुद्धोऽपि साम्येनाप्यविवक्षितः। ... अङ्गिन्यङ्गत्वमाप्तौ यौ तौ न दुष्टौ परस्परम् ॥' -काव्यप्रकाश अर्थात् जहाँ पर परस्पर-विरोधी रस में से एक प्रत्यक्ष न रहकर स्मरण किया जाय अथवा जहाँ समतापूर्वक वर्णन किया जाय या एक रस दूसरे रस का अङ्गी बना दिया जाय तो ऐसे दो विरोधी रसों का एक साथ आना दोष का कारण नहीं होता । स्मर्यमाण होने में रस का बल कम हो जाता है । स्मर्यमारण रस एक प्रकार से दूसरे रस का अङ्ग बन जाता है। ___ काव्यप्रकाश में जो उदाहरण दिया गया है वह बहुत सुन्दर नहीं मालूम होता है । साहित्यदर्पणकार ने भी उसी का उल्लेख किया है। मृत भूरिश्रवा की रणभूमि में कटी हुई बाँह को देखकर उसकी स्त्री कहती है-यह वही हाथ है जो कर्धनी को खींचा करता था इत्यादि.---ऐसा रति-भाव का स्मरण करुणा के साथ मेल नहीं खाता है, उसकी वीरता का स्मरण किया जा सकता था। 'साकेत' में उर्मिला के विरह में अन्य रसों का स्मृति-रूप से वर्णन हुआ है । नीचे के अवतरण में उर्मिला वियोग-वर्णन के सिललिले में स्मृति-रूप में विवाह के पूर्व की कथा कह रही है :- 'कृति में दृढ़, कोमलताकृति, मुनि के संग गये महायति । भय की परिकल्पना बड़ी पथ में आकर ताड़का अड़ी। प्रभु ने, वह लोक-भक्षिणी, श्रबला ही समझी अलक्षिणी, पर थी वह प्रात्ततायिनी, हत होती फिर क्यों न डाइनी। सुख शान्ति , रहे . स्वदेश की यह सच्ची, छवि क्षात्र वेश की॥' -साकेत ( दशमसर्ग)