पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१४२ सिद्धान्त और अध्ययन है । रस-शास्त्र का उदय ही वाह्याभिव्यञ्जकों के अध्ययन से हुआ है। रस- सिद्धान्त के मूल आचार्य हैं नाट्यशास्त्र के कर्ता भरतमुनि । उन्होंने अभिनय के सम्बन्ध में ही वाह्याभिव्यञ्जकों का अनुसंधान किया था किन्तु उनके सामने मनोवेगों का प्रान्तरिक पक्ष गौण नहीं हुआ । अनुभाव कार्यरूप समझे गये, कारणरूप नहीं। ' . . विलयम मेकड्य गल का मत :-विलयम मेकड्यूगल (William Mcdougall) ने मनोवेगों को सहज प्रवृत्तियों (Instincts) का भावात्मक पक्ष माना है । सहज प्रवृत्तियों में (जैसे डर से भागना या छिपना, चिड़ियों का घोंसला बनाना या बच्चे का स्तनपान करना) ज्ञानपक्ष, भावपक्ष. और क्रियापक्ष तीनों ही लगे होते हैं। . शेंड का मत :-शेंड ( Shund ) ने मनोवेगों को एक संस्थान माना है जिसमें कि ये सहज वृत्तियाँ भी शामिल हैं। उन्होंने मनोवेग को एक बड़े संस्थान यानी भावात्मक वृत्तियों (Sentiments) का अङ्ग माना है । पाश्चात्य मनो- विज्ञानवेत्ताओं ने मनोवेगों और भाववृत्तियों में अन्तर किया है। भाववृत्तियाँ स्थायी होती हैं और एक भाववृत्ति से सम्बन्ध रखने वाले कई मनोवेग समय- समय पर जाग्रत हो सकते हैं, जैसे मैत्रीभाव एक भाववृत्ति है । मित्र के दर्शन से सुख, वियोग से दुःख, उसके संकट में पड़ने से भय की आशंका और उसके दुःख में पड़ने से करुणा के मनोवेग उत्पन्न होते हैं। मनोवेग और भाववृत्ति का अन्तर शुक्लजी के एक वाक्य से स्पष्ट किया जा सकता है.---'बैर क्रोध का श्रचार या मुरब्बा है' । क्रोध हर समय नहीं रह सकता, बैर की भाववृत्ति बहुत काल तक रह सकती है। उसके अन्तर्गत कभी क्रोध उत्पन्न होगा, कभी वीरता के भाव और शायद भय भी उत्पन्न हो सकता है। .. ...... डाक्टर भगवानदास का मत :-डाक्टर भगवानदास ने अपनी साईस श्राफ दी इमोशन्स' (Science of the Emotions ) नाम की पुस्तक में मनोवेगों को एक जीव के दूसरे जीव के प्रति भाव के परिज्ञान के साथ इच्छा का संयोग बतलाया है.--.'An emotion is desire plus the cognition involved in the attitude of one Jiva towards another.' (Science of the Emotions, Ch. IV-Pages :59 & 60), उन्होंने सब मनोवेगों को आकर्षण या विकर्षण का रूप बतलाया है, जैसे घृणा विकर्षण का रूप है। बराबर वाले के प्रति आकर्षण प्रेम है, बड़ों के प्रति आकर्षण श्रद्धा है। .. इस प्रकार हम इन सब दृष्टिकोणों को मिलाते हुए यह कह सकते हैं कि