पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जब वही बात किसी चमत्कार के साथ कही जाती है तब वह काव्य होती है। पण्डितराज ने काव्य के चार विभाग किये हैं (मम्मट आदि ने तीन ही विभाग किये हैं )-उत्तमोत्तम, उत्तम, मध्यम और अधम :- 'तच्चोत्तमोत्तमोउत्तममध्यमाधमभेदाच्चतुर्धा' -रसगङ्गाधर (पृष्ठ ४) चित्रकाव्य के भी उन्होंने दो भेद कर दिये हैं। जिसमें बिना व्यञ्जना के अर्थ के चमत्कार की प्रधानता हो वह मध्यम और जिसमें शब्द का ही : चमत्कार हो उसे अधम माना है । पण्डितराज ने हिन्दी कवियों की भांति अपने ही बनाये हुए उदाहरण दिये हैं। उन्होंने बड़े गर्व के साथ कहा है कि उन्होंने किसी दूसरे के उदाहरण नहीं लिए । जिस मृग के पास कस्तूरी है। वह फूलों की ओर मनसा से भी नहीं ध्यान देता :- 'निर्मायनूतनमुदाहरणनुरूपं ____काव्यं ममान निहितं न वरस्य किनिचत् । कि सेवस्यते सुमनसा मनसापि गन्धः कस्तूरिका जननशक्तिभुता मृगेण ।।' --रसगङ्गाधर (पृष्ठ ३) वैसे वे अक्खड़ स्वभाव के तो थे ही किन्तु स्यात् उनको अपने उदा- हरण रचने की प्रेरणा 'चन्द्रालोककार' जयदेव, केशव, चिन्तामणि आदि से मिली हो । उस समय हिन्दी भी अपने पैरों पर खड़ी हो चली थी। इसके पश्चात् हम हिन्दी में काव्यशास्त्र-विकास था संक्षिप्त विवरण देंगे। हिन्दी का साहित्य-शास्त्र हिन्दी को संस्कृत-साहित्य का उत्तराधिकार मिला था किन्तु खेद है कि उत्तराधिकार का पूरा-पूरा उपयोग नहीं हुआ। इसले कई कारण थे । प्राचार्यत्व का भार ऐसे लोगों पर पड़ा जो प्राय: राज्या- विशद विवेचन श्रित थे। हिन्दी के रीति-ग्रन्थ राजदरबारों के लिए के अभाव के लिखे गये थे, जैसी देवी तैसे गीत थी बात रही । वे कारण लोग पण्डितों-की-सी बाल की खाल निकालने वाले तर्क- . पूर्ण विवादों में प्रानन्द नहीं ले सकते थे। विलासी, लोगों को सौन्दर्य-वर्णन ही रुचिकर होता है । इसीलिए हिन्दी के रीति- ग्रन्थों में शृङ्गार और नायिका-भेद का प्राधान्य रहा। . हिन्दी में गूढ़ विवेचन न होने था एक कारण यह भी था कि संस्कृत