पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१८२

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१४६. सिद्धान्त और अध्ययन शोक में चित्त का वैक्लव्य दिखाया गया है-'इष्टनाशादिमिश्चेतीवैक्लव्यं शोकशब्दभाक ' ( साहित्यदर्पण, ३११७७ ) और विस्मय में चित्त का विस्तार बताया गया है-'विस्मयश्चित्त विस्तारो वस्तुमहात्म्यदर्शनात' ( काव्यप्रदीप, पृष्ठ ८४ )। रसों का चित्त की वृत्तियों के आधार पर विभाजन भी किया गया है । हमारे सञ्चारी भाव रस के सुख-दुःखात्मक होने पर प्रकाश डालते हैं, जैसे वीर में हर्ष सञ्चारी रहता है। - ३ और ४. क्रियात्मक प्रवृत्तियाँ और शारीरिक अभिव्यञ्जना : --- ये शास्त्र- वर्णित अनुभाव हैं। इनमें मुख की प्राकृति, स्वेद-कम्पादि सात्विक भाव जो शरीर की प्रान्तरिक क्रियानों से सम्बन्ध रखते हैं और प्रेम में प्रालिङ्गन के के लिए बाहुओं को फैलाना, भय में भागने या छिपने की चेष्टा करना, क्रोध में दांत पीसना, मुट्ठी बाँधना, वीर में ताल ठोंकना इत्यादि सब चेष्टाएँ और क्रियाएं सम्मिलित हैं। इस सम्बन्ध में हमको नायिकाओं के हावों का भी अध्ययन करना आवश्यक है । प्राचार्य शुक्लजी ने इनको उद्दीपन विभाव ही माना है क्योंकि ये पालम्बन की चेष्टाएँ हैं। कुछ प्राचार्यों ने इनको अनु- भाव माना है । मुख्यतया तो हाच उद्दीपन ही है किन्तु नायिका भी नायक के सम्बन्ध में आश्रय हो सकती है। इस तरह हाव अनुभाव कहे जा सकते हैं। भय के अनुभाव : मनोवेगों के वाह्य अभिव्यञ्जकों के सम्बन्ध में हमारे प्राचार्यों ने बड़े सूक्ष्म निरीक्षण का परिचय दिया है। हम एक उदाहरण से इसको स्पष्ट करना चाहते है । भय को मुख्य मनोवेगों में माना गया है । डार्विन (Charles Darwin) के बतलाये हुए अनुभावों का रसग्रन्थों में कहे हुए अनुभावों से मिलान करने पर हमको मालूम होगा कि इस विषय में हमारे प्राचार्य आधुनिक बैज्ञानिकों से कदम मिलाते हुए चल सकते हैं । पहले हम यहाँ के आचार्यों द्वारा किया हुआ वर्णन देते हैं :--- ___ 'अनुभावोऽत्र धैवर्य गद्गद्स्वरभाषणम् । ... प्रलय स्वेदरोमा वकम्पदिका क्षणादयः ॥' -साहित्यदर्पण (३१२३७) .: अर्थात् इसमें वैवर्ण्य (मुह का रङ्ग फीका पड़ जाना), गद्गद्स्वर होकर बोलना अर्थात् टूटे हुए शब्द बोलना, प्रलय (मूर्छा), पसीना, रोंगटे खड़े होना, चारों ओर देखना आदि होते हैं। दूसरे प्राचार्यों ने और भी अनुभाव बतलाये हैं जो 'श्रादयः' में शामिल कहे जा सकते हैं। इसी सम्बन्ध में हिन्दी या एक दोहा लीजिए :- 'मुख शोधन, निश्वास महु, भागि बिलोकनि फेरि ।