पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२१३

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साधारणीकरण--कवि की देन १७७ कि राम-सीतादि का रूप विभिन्न कवियों की भावनाओं की अभिव्यक्ति पर ही आश्रित रहता है तथापि जनता के मन में भी परम्परागत संस्कारों से एक सामान्य भावना बनी रहती है, वही आलम्बन का विषयगत अस्तित्व है । जो बात सबके मन में वर्तमान हो वह मानसिक रहती हुई विषयगतता (Objec- tivity) धारण कर लेती है। जो बात किसी व्यक्ति-विशेष के ही मन की धारणा हो वह वैयक्तिक या विषयीगत (Subjective) कहलाती है । कवि की भावना जहाँ तक उस विषयगत सत्ता अथवा जनसाधारण के मन की भावना से समय रखती है वहाँ तक जनता के हृदय में साधारणीकरण सहज में हो जाता है और रसास्वाद में सुविधा होती है और जहाँ कवि की वैयक्तिक धारणा जनता की धारणा से मेल नहीं खाती है वहाँ रसास्वाद में बाधा पड़ती है। कवि का व्यक्तित्व यदि बहुत ही प्रबल हो तब जनता की भावना में हेर-फेर हो सकता है, अन्यथा नहीं। यह हेर-फेर भी धीरे-धीरे होता है, इसलिए कवि को लोकहृदय की पहचान की अावश्यकता बतलाई गई है। वास्तव में साधारण पालक जनता में प्रचलित भावनाओं का उत्तराधिकार लेकर पाता है। उस पर कवि का भी प्रभाव पड़ता है और उसके मन का चित्र कवि और जनता की भावनाओं का मिश्रित फल होता है। इसके अति- रिक्त कुछ, जैसे महाराण प्रताप, शिवाजी, महात्मा गान्धी अपना विषयगत अस्तित्व भी रखते हैं। गोडसे ने भी महात्मा गान्धी की महत्ता स्वीकार की थी। पालम्बन का यदि बाहरी जगत में नहीं तो जनता के हृदय में प्रस्तित्व रहता है। काल्पनिक पात्रों का भी कम-से-कम व्यक्तिरूप से नहीं तो गुणरूप से जनता के हृदय में अस्तित्व रहता है। आलम्बन का विषयगत अस्तित्व बिल्कुल उठाया नहीं जा सकता। यदि विषयगत अस्तित्व जनता के हृदय में न हो तो इतनी जल्दी साधारणीकरण भी न हो। लौकिक सामग्री को आस्वादयोग्य बनाने में कवि को बहुत-कुछ काट-छाँट करनी पड़ती है और गाँठ का भी नमक-मिर्च-मसाला मिलाने की आवश्यकता होती है (यह भी एक प्रकार का साधारणीकरण है) किन्तु कवि. की देन इसकी मात्रा में आचार्यों का मतभेद है। राजशेखर कवि को ही महत्ता देते हैं, उनका कथन है कि चित्रकार प्राकार के अनुकूल ही चित्र बनाता है, देखिए :- 'स यस्स्वभावः कविस्तदनुरूपं काव्यं । - यादृशाकारश्चित्रकारस्तदाकारं तस्य चित्रम् ।।' -डाक्टर दास गुप्त के काव्य-विचार से उछ त (पृष्ठ १४६)