पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२१५

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साधारणीकरण-पाश्चात्य समीक्षक और साधारणीकरण १७६ तादात्म्य हो जाता है। साधारणीकरण द्वारा कयि, कविता के आश्रय और पाठक भावना के एक सूत्र में बंध जाते हैं । कवि जितना जनता की भावनाओं के निकट पाता है उतना ही पाठकों के साथ उसका भावतादात्म्य होता है किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि कवि जनता के भावों के आगे नहीं जाता। कवि और जनता में प्रादान-प्रदान होता रहता है। कवि जनता से प्रेरणा ग्रहण करता है और वह धीरे-धीरे जनता के भावों में भी परिवर्तन करता है । साधारणीकरण का अभिप्राय है---ग्रालम्बन का व्यक्तित्व बनाये रखते हए भी उसको ऐसे रूप में उपस्थित करना कि वह मेरे-पराये के बन्धनों से मुक्त हो जाय और सब सह- दयों की भावना का समान रूप से विषय बन सके । पाठकों की वे भावनाएँ देश-काल के बन्धनों से मुक्त होती हैं तभी वे दुःखात्मक होने से बची रहती हैं और अखण्ड सात्विक आनन्द का सृजन करती हैं। ____पाश्चात्य समीक्षकों के सम्बन्ध में मेरा ज्ञान सीमित है, (इसका यह अर्थ नहीं कि भारतीय समीक्षकों के सम्बन्ध में सीमित नहीं है। किन्तु मेरा ख्याल है . .. कि उन्होंने विभावादि के साधारणीकरण की अपेक्षा पाश्चात्य समीक्षक तादात्म्य पर अधिक ध्यान दिया है। इसमें प्राश्रय और और साधारणीकरण कवि दोनों के साथ तादात्म्य की बात आजाती है। सब पाठकों के समान रूप से प्रभावित होने का भी कहीं-कहीं उल्लेख है। तादात्म्य का प्रश्न 'Empathy' के रूप में आया है, इसको हिन्दी में भावतादात्म्य कह सकते हैं । सहानुभूति में सहृदय और भोक्ता के दो व्य- क्तित्व रहते हैं। भावतादात्म्य में थोड़े काल के लिए दोनों का व्यक्तित्व एक हो जाता है। यह शब्द मनोविज्ञान से लिया गया है, इसीलिए यहाँ इसकी व्याख्या में ए० ई० मैन्डर (A. E. Mander) की एक मनोविज्ञान की पुस्तक का उद्धरण देना उचित समझता हूँ :-. ___'Empathy connotes the state of the reader or spect- atator who has lost for a while his personal self-consci- ousness and is identifying himself with some character in the story or screen.' -Psychology for every Man and Woman (Page 59) अर्थात् भावतादात्म्य या तदनुभूति पाठक वा दर्शक की वह मानसिक दशा है जिसमें कि वह थोड़ी देर के लिए अपनी वैयक्तिक प्रात्मचेतना को भूलकर नाटक या सिनेमा (उपन्यास भी) के किसी पात्र के साथ अपना तादात्म्य कर