पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२१७

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साधारणीकरण-सारांश विलक्षण हो सकता है। उनका कहना है कि जिन बातों में अधिकांश लोग एकमत हैं उनमें उसे अनुकूलता प्राप्ति करनी चाहिये और जिनमें एकता न हो उनमें वह भी थोड़ी स्वतन्त्रता ले सकता है । जिन बातों में लोग उसकी विलक्षणता से अपनी प्रवृत्तियों में विशष उथल-पुथल न पाकर उनमें साम- जस्य की सम्भावना देखते हैं, उनमें लोग उसका अनुकरण करने लग जाते हैं । इसीलिए कवियों की समानधर्मी सहृदय पाठकों की आवश्यकता रहती है । क्रान्तिकारी कवियों को धीरे-धीरे ही जनता के हृदय में प्रवेश करना पड़ता है। जनता की मनोवृत्ति बदलती अवश्य है, किन्तु क्रमशः । क्रान्ति में सफल वही कवि होता है जो जनता के हृदय की ध्रुव धारणाओं के साथ मिली हुई कुछ अस्थिर भावनाओं की पहिचान रखता है। उनके साथ वह ध्रुव धारणाओं को भी थोड़ा स्पर्श कर लेता है । अछूतोद्वार के लिए लोग शबरी, निषाद,वाल्मीकि का सहारा पकड़ते हैं। श्रीरामचन्द्र जी की बुराई के लिए भवभूति ने ताड़का-बध का और केशव ने विभीषण का उदाहरण लिया है । तुलसी ने भी दबी जबान से बालि-बध की निन्दा की है। किन्तु यदि कोई श्रीराम- चन्द्र जी के पावन चरित्र में सोलह आना दूषण दिखाने की कोशिश करे ( जैसा माइकिल मधुसूदनदत्त ने किया ) तो उसके साथ भावतादात्म्य कठि- नाई से ही हो सकेगा जब तक कि कवि का कवीर-का-सा विशेष जोरदार व्यक्तित्व न हो। - क्रोचे ( Croce ) ने भी कवि और पाठक के तादात्म्य की समस्या उठाई है। उनका कथन है कि डान्टे ( Dante ) का रसास्वाद करने के लिए हमको उसके ही धरातल तक पहुंचना चाहिए । इसीलिए उसने कवि के दो व्यक्तित्व माने हैं-एक लौकिक और दूसरा आदर्शमूलक । 'लौकिक व्यक्तित्व में कवि और पाठक का भिन्न व्यक्तित्व रहता है और कलाकार के प्रादर्शमूलक व्यक्तित्व में कवि और पाठक का तादात्म्य हो जाता है। इस विषय से सम्बन्धित क्रोचे का उद्धरण इसी पुस्तक के 'अभिव्यञ्जनावाद एवं कलावाद' शीर्षक अध्याय में आगे देखिए। ... . संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि साधारणीकरण व्यक्ति का नहीं ( उसकी मुख्य विशेषताओं की सम्पन्नता अक्षुण्ण रहती है यदि आलम्बन ....: बिल्कुल समान्य बन जाता है तो उसका कोई अस्तित्व सारांश . ही नहीं रहता है । ) वरन् उसके सम्बन्धों का होता . . . है । जल, वायु, नीलाकाश की भांति उस पर किसी का विषेशाधिकार नहीं रहता । उसमें न ममत्वजन्य दुःख और न परत्वजन्य