पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२२

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( १८ ) काव्य की परिभाषा देखिए :- विश्वनाथ से प्रभावित (क) 'बतकहाउ रसमै जु है कवित्त कहावै सोइ' । विश्वनाथ की परिभाषा इस प्रकार है-'वाक्यं रसात्मक काव्यं' ( साहित्यदर्पण, १३)। मम्मट से प्रभावित : (ख) 'सगुन अलंकारन सहित, दोषरहित जो होइ । शब्द अर्थ वारौ कवित्त, विबुध कहत सब कोइ ॥' मम्मट की परिभाषा इस प्रकार है :- 'तददोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः कापि' -काव्यप्रकाश (११४) (चिन्तामणि की ये दोनों परिभाषायें श्रीभगीरथ मिश्र के 'हिन्दी काव्यशास्त्र'- क्रमशः पृष्ठ ७५ और ७६-के उद्धरणों से उद्धृत की गई है।) वास्तव में हिन्दी के प्राचार्य सारग्राही थे जो कविता द्वारा काव्य- सिद्धान्तों का प्रचार कर उदाहरणों की सृष्टि में थोड़ी वाह-वाही पा लेते थे। उदाहरण उनके अवश्य फड़कते हुए होते थे। तोषकवि ( रचनाकाल संवन् १६६१) ने रस को प्रधानता दी। उनके ग्रन्थ 'सुधा-निधि' के नामकरण से भी यह व्यक्त होता है कि वे ररा को प्रधानता देते थे। इसमें रस, भाव, नायिका-भेद आदि तोषकवि रस से सम्बन्धित विषय लिए गये हैं। लक्षण दोहों में दिये हैं और उदाहरण कवित्त, सवैया, छप्पयों और दोहों आदि में दिये हैं। - महाराज जसवन्तसिंह ( जन्म-संवत् १६२३ ) का भाषा-भूषण' बड़ा लोकप्रिय ग्रन्थ है। यद्यपि इस ग्रन्थ का नाम भूषण (अलङ्कार) पर है तथापि इसमें सभी काव्याङ्गों का संक्षेप में वर्णन है। . महाराज इन्होंने ग्रन्थ के विषयों के सम्बन्ध में इस प्रकार जसवन्तसिंह लिखा है : - 'लच्छन तिय अरु पुरुष के , हाव-भाव रस धाम । श्रलंकार संयोग से, भाषा भूषण नाम ॥' -भाषा-भूषन (दोहा २१३) इसमें संस्कृत के 'चन्द्रालोक' की भाँति एक ही दोहे में लक्षण और उदाहरण दिये गये हैं । एक उदाहरण लीजिए :- ... 'परिसंख्या इक थक्ष यरजि दूजे थल ठहराइ ।। ..