पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२२७

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काव्य के विभिन्न रूप-गद्य और पद्य लय के ढाँचे-मात्र हैं, वे सर्वभुलभ हैं। निराला, पन्त जैसे कुशल कवि छन्द के बिना भी लय की साधना करते हैं । यह भेद नितान्त आकार का ही नहीं वरन् भाव का भी है । पद्य में गद्य की अपेक्षा भाव का प्राधान्य रहता है, गद्य का सम्बन्ध गद् धातु से है, वह बोलचाल की स्वाभाविक भाषा है। पद्य का सम्बन्ध पद में है, इसलिए उसमें नृत्य-की-सी गति रहती है । वह भाव की गति और शक्ति के साथ बहती है । प्रबन्ध और मुक्तक:-धन्ध के आधार पर प्रबन्ध और मुक्तक नाम के दो विभाग किये गये हैं। प्रबन्ध में तारतम्य और पूर्वापर सम्बन्ध रहता है । मुक्तककाव्य के छन्द स्वतःपूर्ण होते हैं, वे एक-दूसरे की अपेक्षा नहीं करते। प्रबन्धकाव्य में वर्णन, प्राक्कथन, पारस्परिक सम्बन्ध और सामूहिक प्रभाव का प्राधान्य रहता है । मुक्तक में एक-एक छन्द की साज-सम्हार पर अधिक ध्यान दिया जाता है। महाकाव्य और खण्डकाव्य:-~जीवन की अनेकरूपता और एकपक्षता के आधार पर महाकाव्य और खण्डकाव्य नाम के दो भेद किये गये हैं। महाकाव्य में एक निश्चित प्रकार के अतिरिक्त विषय की महानता और उदात्तता रहती है । उसका नायक व्यक्ति की अपेक्षा जाति का प्रतिनिधि अधिक रहता है। रघुवंश में रघुवंशी राजाओं के गुण वतलाये गये हैं; वे भारतीय मनोवृत्ति के साररूप हैं। खण्डकाव्य में जीवन के एक ही पहलू या एक ही घटना को महत्ता दी जाती है । महाकाव्य के प्राकार-सम्बन्धी नियम ( पाठ सर्ग से अधिक होना, एक सर्ग में एक ही छन्द का होना, प्रत्येक सर्ग के अन्त में आगामी लर्ग की कथा की सूचना होना ), उस की महत्ता, प्रबन्ध-सुष्टुता और सम्बद्धता के द्योतक हैं। महाकाव्य के रस (शृङ्गार, वीर, शान्त) और उसके नेता की श्रेष्ठता उसमें उदात्त भावों की व्यञ्जना करती हैं। ____ मुक्तक काव्य भी कई प्रकार का होता है । प्राकार की दृष्टि से दो भेद हैं--एक पाठय और दूपरा गेय जिसको प्रगीत भी कहते हैं । गेय में पाठ्य को अपेक्षा वैयक्तिकता, भावात्मकता और आत्मनिवेदन का पक्ष अधिक रहता है। जहाँ वर्णन सङ्गीतमय और हृदय के वैयक्तिक उल्लास के साथ होता है वहाँ वर्णनात्मक छन्द भी प्रगीतकाव्य की कोटि में आते हैं। सूरदास के लीला-सम्बन्धी पद इसके उदाहरण हैं। उनमें 'सूर के प्रभु' आदि छाप लगाकर सूरदासजी अपना निजी सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं। तुलसीदासजी की विनयपत्रिका, महादेवी, निराला आदि के गीत इसी कोटि में आयेंगे । कुछ मुक्तकों में, जैसे गीतावली, विनयपत्रिका आदि में सिलसिला रहता है किन्तु