पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२३१

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काव्य का कलापक्ष-भाव-प्रेषण की समस्या १६५ 'प्रिन्सीपिल्स आफ क्रिटिसिज्म' (Principles of Criticism) नाम की पुस्तक में उठाया है । क्या एक व्यक्ति अपनी मनोदशा भाव-प्रेपण की या प्रभाव को दूसरे में स्थानान्तरित कर सकता है ? समस्या . वैसे तो अपनी मनोदशा का ज्यों-का-त्यों दूसरे में पहुंचा देना कठिन कार्य है । हम यह भी नहीं कह सकते कि दो मनुष्यों के मन में लाल रङ्ग का एक-सा विचार है किन्तु इसका व्यावहारिक प्रमाण यह है कि किसी वस्तु को जो लाल है सभी लाल कहते हैं । सूक्ष्म मनो- दशामों के सम्बन्ध में यह प्रश्न कुछ जटिल हो जाता है। प्राध्यात्मवादी वेदान्ती लोग चाहे सब जीवों की ब्रह्म में एकता मानें किन्तु व्यवहार में भेद मानते हैं । सम्भव है कि किसी अलौकिक साधन से एक के भाव दूसरे में पहुँच जायँ किन्तु साधारण मनुष्यों के पास भाषा का ही साधन है। भाषा द्वारा हमारे भाव दूसरे के मन में उसी प्रकार पहुँच जाते हैं जिस प्रकार टेलीफोन की विद्युत तरङ्गों के सहारे हमारी आवाज़ दूसरी जगह पहुँच जाती है या रेडियो द्वारा सब जगह पहुँच जाती है, ग्राहक-यन्त्र चाहिए। . ___ इस अभिव्यक्ति के सम्बन्ध में आई० ए० रिचर्डस से प्रेरणा लेकर यह कहा जा सकता है कि जितना व्यक्ति का विचार सुगठित होगा, जितनी भाषा में मूर्तता होगी और जितनी कि पाठक को वणित विषयों की जानकारी होगी, उसी मात्रा में समान भावों के उत्पन्न करने में सफलता मिलेगी। इसी- लिए हमारे यहाँ पाठक को सहृदय कहा गया है। पाठक की ग्राहकता पर तो बहुत-कुछ निर्भर ही है किन्तु लेखक और कवि के भावों की स्पष्टता, तीव्रता, सुगठितता और उनको व्यक्त करने वाली भाषा की व्यञ्जना-शक्ति प्रेषण को सफल बनाने वाले कारणों में गिनी जाती है । जिस प्रकार हम अपने समाज- विशेष में किसी जाने-पहचाने मनुष्य के सम्बन्ध में अपने प्रभावों को दूसरे तक सफलता से पहुँवा सकते हैं, उस प्रकार भाषा द्वारा ऐसे चित्रों को उपस्थित करके जिनसे सब लोग परिचित हों हम अपनी भावाभिव्यक्ति में अधिक सफल हो सकते हैं। इसीलिए साधारणीकरण की तथा सबको अपील करने वाले गुणों, रूपकों आदि की आवश्यकता होती है । यद्यपि जितने दो व्यक्तियों के हृदय एक-से संस्कृत होंगे उतना ही अच्छा भाव-प्रेषण होगा तथापि सफल कवि की सजीवनी शक्ति मुर्दो को नहीं तो अधमरों को अवश्य जीवित कर सकती है। . जैसा कि हम कह सकते हैं, शैली का महत्त्व अपने प्रभावों को समान रूप से दूसरों तक पहुँचाने में है, यह पूरा-पूरा तो सम्भव नहीं किन्तु अधिकांश में