पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२३२

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सिद्धान्त और अध्ययन अवश्य सम्भव है। जिस प्रकार एक कवि अपनी रचना के सृजन में तथा पीछे से उसको पढ़कर भाव-मग्न हो जाता है, वैसे ही उसकी कलम के जादू से सृजित भाव-लहरी में पाठक भी अवगाहन कर सकते हैं। काव्य के लिए दो वस्तुएँ अपेक्षित हैं.-'वस्तु' (Matter) और उसकी अभिव्यत्रित का 'प्रकार' (Manner)। वस्तु की अभिव्यक्ति के प्रकार को ही शैली कहते हैं। अभिव्यक्ति के साधन बदलते रहते वस्तु और श्राकार हैं। जिस प्रकार मनुष्य का व्यक्तित्व उसकी चाल-ढाल, वेश-भूषा और शारीरिक एवं बोल-चाल की विशेषताओं में निहित रहता है, उसी प्रकार वह उसकी लेखन-शैली में भी तिल में तेल की भाँति नहीं (क्योंकि तिलों को कोल्हू में निष्पीड़न करना पड़ता है) वरन् पुष्प में सौरभ की भाँति व्याप्त ही नहीं वरन् उसके द्वारा प्रकट होता रहता है, तभी तो कहा गया है-'Style is the man'-अर्थात् शैली ही मनुष्य (व्यक्ति) है। व्यक्ति के साथ ही शैली का अपने विषय से भी 'गिरा-अर्थ जल-बीचि सम' अटूट सम्बन्ध है । वस्तु और शैली का पार्थक्य उतना ही असम्भव है जितना कि 'म्याऊँ' की ध्वनि का बिल्ली से । 'म्याऊँ" बिल्ली की अभिव्यक्ति है और बिल्ली को 'म्याऊँ' के नाम से पुकारना व्यक्ति, विषय और अभिव्यक्ति की एकता का एक ज्वलन्त उदाहरण है । तलवार की धातु और उसका आकार-प्रकार जिसमें उसका स्थूलत्व भी शामिल है, अलग नहीं किया जा सकता है। यदि वस्तु (Matter) है तो उनका कोई-न-कोई आकार (Form) होगा और यदि प्राकार है तो वह किसी-न-किसी पदार्थ का होगा । वस्तु से भिन्न प्राकार रेखागणित की वस्तु चाहे हो किन्तु वास्तविक जगत में उसका अस्तित्व कठिन है। . यद्यपि वस्तु और प्राकार को एक-दूसरे से पृथक् करने की असम्भवता को प्रायः सभी स्वीकार करते हैं तथापि उनके अपेक्षाकृत महत्त्व पर लोगों का . मतभेद है । तुलसीदास-सदृश कवि वर्ण्य वस्तु को ही सापेक्ष महत्त्व महत्त्व देते हैं और केशव-जैसे पण्डित अलङ्कार को काव्य का परमावश्यक उपकरण मानते हैं। यह बात किसी अंश में मान्य हो सकती है कि रचना का कौशल नगण्य वस्तु को भी चमका दे सकता है तथापि यदि वस्तु महान् हो तो उत्तम कलाकार के हाथ में रचना रामचरितमानस की भाँति मणि-काञ्चन-संयोग का उदाहरण बन जाती है।