पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२३९

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काव्यका कलापन-गुण २०३ है और प्रोजगुण वीर, वीभत्स और रौद्र में क्रमशः उत्कर्ष को प्राप्त होता है । मम्मटाचार्य ने वृत्तियों और रीतियों को एक माना है-ऐतास्तिस्रो वृत्तयः वामनादीनां मते चैदर्भीगौड़ीपाञ्चाल्याख्या रीतयो मताः' ( काव्य- प्रकाश, ६८५ के पूर्वाई की वृत्ति)। वृत्ति और रीति में साधारणतया तो भेद नहीं किया जाता किन्तु इनमें थोड़ा भेद अवश्य है। वृत्तियों का विभाजन रचना के गुण पर है और रोतियों का वर्गीकरण देश या प्रान्त के आधार पर है। रीतियों का सम्बन्ध यद्यपि गुणों से है तथापि उनमें रचना के वाह्य रूप पर अधिक बल दिया गया है । वृत्तियों में मानसिक पक्ष की ओर भी संकेत रहता है। इस भेद को रुय्यक ने अधिक स्पष्टता प्रदान की है। वृत्तियों का सम्बन्ध अर्थ से है। नाटकों में भी वृत्तियाँ मानी गई हैं। उनमें भाषा के अतिरिक्त अभिनय-सम्बन्धी सभी बातें आजाती हैं। नाटकों में चार वृत्तियों मानी नई हैं इनका रसों से इस प्रकार सम्बन्ध माना गया है : --- १. कैशिकी-शृङ्गार और हास्य । २. सात्वती-~-वीर, रौद्र और अद्भुत । ३. प्रारभटी-भयानक, वीभत्स, रौद्र । ४. भारती-करुण और अद्भुत। 'शृङ्गारे चैव हास्ये च वृत्तिः स्याद् कैशिकीति सा। सास्वती नाम साज्ञेया बोररौद्रान ताश्रया ॥ भयानके च वीभत्से रौद्र चारभटी भवेत् । भारती वापि विज्ञ या करुणान तसंश्रया ॥' -नाट्यशास्त्र (२२।६५, ६६) प्राचार्य राजशेखर ने प्रवृत्ति और रीति में इस प्रकार अन्तर किया है- 'तत्र वेशविन्यासक्रमः प्रवृत्तिः, बिलासविन्यासक्रमो वृत्तिः, बचन विन्यासक्रमो रीतिः'--प्रवृत्तियों का भेद वेशविन्यास पर निर्भर है । वृत्तियों का विभाजन विलास-विन्यास ( नृत्यादि ) के आधार पर है और रीतियों का विभाजन कथन के ढंग पर अवलम्बित है। भोज ने अपने सरस्वतीकण्ठाभरण में रीति का साहित्य के मार्गों से अर्थात् रचना के ढंगों से सम्बन्ध बतलाया है। रीति शब्द रीङ धातु से जिसका अर्थ चलना है, बना है-'रीङ्ग गताविति धातोः सा व्युत्पत्या रीतिरुच्यते' । भोज ने वृत्ति का सम्बन्ध विकास, विक्षेप, संकोच और विस्तार मनोदशाओं से अर्थात् मन पर पड़े हुए प्रभावों से माना । है। रीति का सम्बन्ध बाहरी वर्ण-विन्यास से अधिक है, वृत्ति का मन से :- 'या विकाशेऽथ विक्षेप संकोचे विस्तरे तथा।