पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२४४

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२०८ . सिद्धान्त और अध्ययन है। अनुप्रासादि अलङ्कार इस गुण को लाने में सहायक होते हैं। इस मार्ग का चौथा गुण है आभिजात्य, इसमें शब्दों की सुकुमारता और शालीनता के साथ गठन का भी सौष्ठव रहता है । विचित्र मार्ग में अलङ्कारों का प्राधान्य होता है; एक अलङ्कार दूसरे से गुम्फित रहता है। सुकुमार शैली में स्वकीया-का-सा सहज अलङ्करण होता है । विचित्र शैली में गणिका-का-सा कृत्रिम साज-शृङ्गार श्रीर अलङ्कारों का प्रदर्शन पाया जाता है। इन दोनों से मिलता-जुलता बीच का मार्ग मध्यम मार्ग कहलाता है। ___ इन तीनों शैलियों के उदाहरणों में बतलाया है कि कालिदास और सर्वसेन की रचनाएँ सुकुमार मार्ग की कही जायेंगी । वागभट्ट, भवभूति और राजशेखर की रचनाएँ दूसरे मार्ग (विचित्र मार्ग) की हैं और मातृगुप्त, मायूराज और मञ्जीर की रचनाएँ मध्यम मार्ग की उदाहरण कही जायेंगी। हिन्दी में भी सूर, तुलसी सुकुमार मार्ग के कहे जायेंगे और केशव, बिहारी अादि विचित्र मार्ग के समझे जायेंगे। _ विशेष :--कुन्तल का यह विभाजन बहुत अच्छा है किन्तु पूर्ण नहीं कहा जा सकता । यह दो प्रकार की मनोवृत्तियों का द्योतक है। वैसे तो सुकुमार मार्ग वैदर्भी से समानता रखता है और विचित्र मार्ग गौडी के अनुकूल है किन्तु ये समानताएँ पूरी-पूरी नहीं हैं । गौडी में ओज की मात्रा रहती है, वह विचित्र में आवश्यक नहीं है। भावमयी भाषा में जो स्वाभाविक गति आजाती है छन्द उसी का बाहरी आकार है । छन्द में वर्ण नृत्य की भाँति ताल और लय के आश्रित रहते हैं। छन्द भाषा को भावानुकूल बनाकर पाठक में एक विशेष __ग्राहकता उत्पन्न कर देते हैं। शब्दों की ध्वनि द्वारा ही (शब्दों के अर्थ जाने बिना भी ) थोड़ी-बहुत अर्थ- व्यजना हो जाती है । छन्दों द्वारा जो सौन्दर्य का उत्पादन होता है उसके मूल में भी अनेकता में एकता का सिद्धान्त है। छन्द में शब्दों और वर्णों के विभेद में स्वरों की या मात्राओं की गणना का ( वर्गों के लघु-गुरु-क्रम होने में, जैसे वर्णवृत्तों में होता है अथवा मात्राओं की समानता में, जैसे मात्रिक छन्दों में ) साम्य रहता है। भेव में अभेद उच्चारण और श्रवण-सम्बन्धी इन्द्रियों को भी सुखकर होता है। नियम लय का ही प्रकार है। मुक्तक छन्द में जो नियमों से परे होते है बँधे हुए आकार के बिना ही लय की साधना होती है । तुक का अब इतना मान नहीं जितना पहले था । तुक स्मरण