पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२४९

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१५ : शब्द-शक्ति ___ 'शब्द' शब्द अपने विस्तृत अर्थ में पृथक् शब्दों का ही द्योतक नहीं होता है। वरन् उसके अन्तर्गत वाणी का समस्त व्यापार प्राजाता है। इस दृष्टि से वाक्य भी शब्द के ही अङ्ग माने जाएँगे । शब्द तथा शक्ति की व्याख्या वाक्यों की सार्थकता उनके अर्थ में है । अर्थवान् शब्द ही .. शब्द कहलाते हैं। जिस शक्ति या व्यापार द्वारा अर्थ को वोध होता है उसे शवित कहते हैं ('शब्दार्थसम्बन्धः शक्तिः')। जितने प्रकार के अर्थ होंगे उतनी ही प्रकार की शक्तियाँ होंगी। शब्द के प्रायः तीन प्रकार के अर्थ माने जाते हैं :- ... 'पदवाचक अरु लाच्छनिक व्यञ्जक तीन विधान । Ki..ताते वाचक भेद को, पहिले करों बखान ॥' ...... -भिखारीदासकृत काव्यनिर्णय (पदार्थनिर्णयवर्णन, १) १. वाच्यार्थ वा अभिधार्थ अर्थात् मूल अर्थ जो प्रायः कोषों में मिलता है, जैसे 'अश्व' का अर्थ 'घोड़ा' अथवा 'गर्दभ' का अर्थ 'गधा', ये अर्थ किसी पदार्थ, भात्र या क्रिया की अोर निश्चित संकेत करते हैं। २. लक्ष्यार्थ वा लाक्षणिक अर्थ, जैसे किसी मनुष्य के लिए हम कहें 'यह गधा है तो उसका अर्थ होगा कि 'वह मूर्ख है'। ३. व्यङ्गधार्थ, जैसे 'संध्या हो गई' यह वाक्य एक भौतिक घटना की ओर तो संकेत करता ही है किन्तु इसका अन्य अर्थ भी ध्वनित होता है, अर्थात् विद्यार्थी के लिए पाठ बन्द कर देना चाहिए अथवा गृहलक्ष्मी के लिए दीपक बाल देना चाहिए। - - इन्हीं तीनों अर्थों के अनुकूल शब्द की तीन शक्तियाँ मानी गई है-अभिन धा, लक्षणा और व्यञ्जना । कोई-कोई प्राचार्य तात्पर्य नाम की एक चौथी शवित भी मानते हैं । यद्यपि अर्थ-ग्रहण में वक्ता, थोता और शब्द तीनों का ही योग रहता है (शब्द ही वक्ता और श्रोता का मानसिक सम्पर्क कराते हैं) तथापि ये शक्तियां शब्द की ही हैं । . अभिधावृत्ति द्वारा ही शब्द का मूल या मुख्य अर्थ जाना जाता है । इसके द्वारा ही शब्द के वाचक अर्थ का अर्थात् उन वस्तुओं, भावों और क्रियाओं का, जो उससे द्योतित होती है, ज्ञान होता है। अब यह देखना है कि