पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शब्द-शक्ति-अभिधा जाता है ? यह प्रश्न विविध दर्शनों में मतभेद का विषय रहा है । मीमांसक लोग अर्थबोध जाति का ही मानते हैं। उनका कथन है कि 'गौ' कहने से 'गो' जाति का बोध होता है किन्तु जब हम कहते हैं कि 'गौ लायो' तब जाति नहीं लाई जाती अथवा 'गौ को खूटे से बाँधो' उस समय भी जाति को खूटे से नहीं बाँधते, किसी व्यक्ति को ही बांधते हैं । व्यक्ति के सम्बन्ध में यह आपत्ति उठाई जाती है कि व्यक्ति अनन्त है, जब शब्द किसी एक व्यक्ति का वाचक' होता है तब वह किसी दूसरे व्यक्ति का किस प्रकार वाचक हो सकता है और जब हम यह कहते हैं कि 'डित्थ नाम की श्वेत गौ घास चर रही है'-तब 'श्वेत' भी यदि व्यक्ति के लिए ही आता है तब क्या 'डित्थ 'श्वेत' और 'गौ' तीनों ही शब्द पर्यायवाची होकर एक ही व्यक्ति के लिए पाते हैं ? एक व्यक्ति के लिए तीन शब्दों का प्रयोग लाघव के विरुद्ध है। न तों निरी जाति मानने से ही काम चलता है और न केवल व्यक्ति के मानने से अर्य-सिद्धि होती है, इसलिए न्याय ने जाति-विशिष्ट व्यक्ति में संकेत-ग्रहण किया है अर्थात् शब्द जाति के आधार पर व्यक्ति-विशेष की ओर संकेत करता है । इस मत में व्यक्ति और सामान्य का समन्वय हो जाता है। वैयाकरण लोगों ने सांकेतिक अर्थ जाति, गुण, क्रिया और यदृच्छा चारों प्रकार का माना है । 'डिस्थ नाम की श्वेत गौ चलती है' --यहाँ 'डित्थ' यदृच्छा अर्थात् इच्छापूर्वक दिया हुआ व्यक्ति का नाम है, 'श्वेत' गुण है, 'गी' जाति है और . 'चलती है' क्रिया है । नाम भी चार प्रकार के माने गये हैं-जो नाम जाति के आधार पर रखे जाते हैं वे जातिसूचक कहलाते हैं, जैसे यदुनाथ, रघुनाथ । जो केवल इच्छा पर रखे जाते हैं वे यदृच्छा कहलाते हैं, जैसे मुटटू; जो गुण के आधार पर रखे जाते हैं वे गुण: चक कहलाते हैं, जैसे श्याम और जो क्रिया के आधार पर रखे जाते हैं वे क्रियासूचक होते हैं, जैसे गिरधारी, कंसारि । नामों का इस प्रकार विभाग मान लेने से पाश्चात्य शास्त्र में उठाया हुआ प्रश्न कि नामवाचक शब्द (Proper Names) गुणवाचक (Connotative) होते हैं या नहीं, मिट जाता है। यह समस्या केवल यदृच्छा नामों के सम्बन्ध में हो सकती है। मीमांसक लोग तो डित्थ आदि व्यक्तिवाचक नामों को भी। जातिवाचक मानते हैं । उनका कहना है कि जितने प्रादमी बित्थ शब्द का . उच्चारण करते हैं उन विभिन्न प्रकार के उच्चरित शब्दों में डिस्थित्व रहता है। बौद्ध लोग 'गो' शब्द को, गौ को अन्य पशु प्रों से पृथक् करने वाले अभा- वात्मक गुणों का, जिसे वे अपोह कहते हैं, संकेत मानते हैं। वास्तव में शब्द का संकेत या तो जातिविशिष्ट व्यक्ति में मानना चाहिए या अवसर और प्रसङ्ग के