पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२५९

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२२३ः शब्द-शक्ति-लक्षणा स्वभाव दिखाने का प्रयोजन), शुद्धा (यहाँ सम्बन्ध धार्य-धारक का है, सादृश्य का नहीं है)। इसमें 'ये' वा 'वे' शब्द नहीं हैं, इसलिए साध्यवसाना है । जिस वस्तु पर 'भाले' का आरोप है वह नहीं है, यह उपादानलक्षणा है । इसमें 'भाले' का अर्थ भी रहा है, पूत्ति के लिए दूसरा शामिल किया गया है.-भाले को धारण करने वाले । इसको रूढ़ि भी कह सकते हैं, बहुत दिन से प्रचलित प्रयोजनवती रूढ़ि भी हो जाती है। 'निर्दयता की मारों से, उन हिंसक हुंकारों से नत-मस्तक भाज कलिंग हुा ।' -लहर (पृष्ठ५६) पहली पंक्ति में 'निर्दयता' का अर्थ है-निर्दयतापूर्ण मनुष्यों की मारों से । यहाँ पर निर्दयता' शब्द अपना अर्थ बनाये रखकर अपनी पूत्ति के लिए एक और अर्थ स्वीकार करता है, इसलिए यहाँ उपादानलक्षणा है । यहाँ लक्षणा में गुण और गुणी सम्बन्ध है, इसलिए शुद्धा है । 'निर्दयता की' अतिशयता. दिखाने के लिए निर्दय को ही साकार बना दिया है, इसलिए प्रयोजनवती है। इसी प्रकार "हिंसक हुँकारों' में भी लक्षणा लगाई जायगी । नतमस्तक श्राज कलिङ्ग हुआ'कलिङ्ग' देश का नाम है। रूढालक्षणा से इसका अर्थ हुआ-कलिङ्ग-देशवासी। इसमें 'कलिङ्ग अपना अर्थ बनाये रख- कर पूर्ति के लिए दूसरे अर्थ को स्वीकार करता है, इसलिए इसमें उपादान- लक्षणा हुई। इसमें देश और देशवासियो का आधार-आधेय-सम्बन्ध है, इसलिए शुद्धा हुई । यहाँ पर आरोप का विषय पृथक् नहीं है, इसलिए साध्यवसाना, 'नमस्तक भी लाक्षणिक शब्द है। _ 'छल में विलीन बल' यहाँ पर 'छल' से अर्थ है, छली लोगों का, 'विलीन' का अर्थ है परास्त हुए । यहाँ पर प्रयोजनवतीलक्षणा है (छल और बल का आधिक्स दिखाने के लिए उसे मूतिमान् किया), उपादान (छल और बल ने .. अपनी पूत्ति की है, अर्थ नहीं त्यागा ह), शुद्धा और साध्यवसाना हैं । .... - विशेष :-भाषा पर लक्षणा का साम्राज्य बहुत दिनों से चला पारहा' है। हमारे मुहावरे, रूपक आदि लक्षणा पर ही आश्रित हैं । कल्पना के लिए मूत्तिमत्ता आवश्यक रहती है-चारपाई, सुराही की गरदन, पंखा (पंख), पत्र (पत्ते.), पहाड़ की चोटी, चोटी के विद्वान्, कविता के चरण, गगनचुम्बी, धरा- तल, चरण-कमल, ध्यानमग्न होना, पार पाना, प्रकाशित करना, खोजाना :. (भूल जाने के अर्थ में), बात काटना, पोता फेरना; आग लगाना, बात उगलना .