पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२६०

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२२४ सिद्धान्त और अध्ययन (कबूल लेने के अर्थ में), अंकुरित होना, सूत्रपात करना इत्यादि । इसीलिए भाषा में मुहावरों का महत्त्व है । उनसे शैली में राजीवता, मूतिमत्ता और परम्परा के साथ चलने की प्रसन्नता पाती है। लाक्षणिक प्रयोगों को अभि- धार्थ में लेने से कभी-कभी सुन्दर हास्य की सामग्री भी उपस्थित हो जाती है, जैसे, किसी ने कहा 'भूख लगी है' तो उत्तर में कहा 'धो डालो' । यदि कोई किसी काने अफसर को कहे कि वे तो सबको एक आँख से देखते हैं तो यहाँ अभिधा और लक्ष्यार्थ को मिलाकर एक सुन्दर व्यङ्गय उपस्थित हो जायगा । यदि किसी के पास कुछ पैसे हों और उससे कहा जाय कि 'अब तो श्राप पैसेवाले हो गये हैं तो यहाँ पैसेवाले' का लाक्षणिक अर्थ लिया जायगा । अभिधा और लक्षणा के विराम लेने पर जो एक विशष अर्थ निकलता है उसे व्यङ्गयार्थ कहते हैं और जिस वृत्ति या शक्ति के द्वारा यह अर्थ प्राप्त होता है उसे व्यञ्जना कहते है। 'संध्या होगई'--यह व्यजना की घटना-विशेष है। अभिधा इसकी सूचना देकर काम कर व्याख्या चुकी, इससे जो विशेष अर्थ निकला या संकेत हुआ वह यह है 'दीपक जला दिया जाय' अथवा 'पाठ समाप्त करो' । भिन्न-भिन्न परिस्थितियों और गिरन-भिन्न पुरुषों के लिए इसका विशेष अर्थ होगा। इसी प्रकार 'गंगायां घोषः' (गंगा में गाँव) का अर्थ, गङ्गा तट पर गाँव है, होगा। लक्षणा समाप्त हो गई, इसके अतिरिक्त भी कुछ बाकी रह जाता है, वह यह है कि गाँव बड़ा शीतल और पवित्र है। एक व्यजना और हो सकती है कि वहाँ जाकर बराना चाहिए, वहाँ गङ्गास्नान की सुविधा होगी। अभिधा और लक्षणा में तो व्यञ्जना लगती ही है किन्तु व्यञ्जना पर भी व्यञ्जना लगती है, जैसे यदि कोई कहे ----'अभी मुंह तक नहीं धोया है- इसका व्यङ्गयार्थ यह होगा कि मैं यहाँ अब टहर नहीं सकूँगा। इसका भी यह व्यङ्गधार्थ होगा कि जो काम आप मुझको बतलाते हैं, मैं न कर सकूँगा दूसरे । को दे दीजिए। इसी प्रकार पहले समय निश्चित कराकर रात को किसी के घर जायँ और कहें कि-'बत्तियाँ संग गुल हो चुकी हैं तो इसकी व्यञ्जना होगी कि सब लोग सो चुके हैं। इसके ऊपर भी व्यञ्जना यह होगी कि भले श्रादमियों ने हमारा इन्तजार नहीं किया और हमारे आने की उनको परवाह नहीं है। व्यन्जना के भेद :-व्यजना के अनेकों भेद हैं। इनकी भूल-भुलैयों में न पड़कर उसके मुख्य भेद वतला देना पर्याप्त होगा । व्यजना के पहले तो शाब्दी और प्रार्थी दो भेद किये जाते हैं । शाब्दी व्यजना में शब्दों की मुख्यता रहती है अर्थात् व्यञ्जना के लिए वे ही शान्य विशेष रहें तभी ..