पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२६५

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शब्द-शक्ति-तात्पर्यवत्ति के अाकांक्षा, योग्यता, सन्निधि से युक्त होकर अन्वित होने पर तात्पर्यवृत्ति द्वारा पूरे वाक्य का बोध कराता है । ये लोग पदों में स्वतन्त्र अर्थ मानते हुए उनके अन्वित होने पर तात्पर्यवृत्ति द्वारा पूरे वाक्य का अलग अर्थ मानते हैं, इसीलिए ये अभिहितान्वयवादी कहलाते हैं-अभिहितानां पदार्थानामाभि- धायिनां वा पदार्थानामन्वय इति ये वदन्ति ते अभिहितान्धयवादिनः । ___ अन्विताभिधानधादी :-प्रभाकर मत के अनुयायी अन्विताभिधानवादी शब्दों के स्वतन्त्र अर्थ में विश्वास नहीं करते, उनका कथन है कि श्रोता 'गाय लामो', 'गाय ले जायो' और 'गाय बाँधो' शब्दों के प्रादेशों को सुनकर दूसरे के व्यवहार से गाय पद का अर्थ जान लेता है, इसी प्रकार 'गाय लायो', 'घोड़ा लामो', 'पुस्तक लायो' प्रादि में प्रयुक्त 'लायो' पद का सामान्य अर्थ उसके मस्तिष्क में उपस्थित हो जाता है। इस सामान्य ज्ञान से विशिष्ट 'लाना' क्रिया का व्यक्तिगत अर्थ वह सम्पादित करता है । 'गाय लाओ' आदि शब्दों का स्वतन्त्र रूप से कोई अर्थ-बोध नहीं, वाक्य में अन्वित रहने पर ही उनका अभिधान (प्रतिपाद्य अर्थ) हो सकता है। इस प्रकार दोनों ही किसी- न-किसी रूप में से एक सम्मिलित या पूर्ण वाक्यार्थ को मानते हैं किन्तु एक (अभिहितान्वयवादी) शब्दों में स्वतन्त्र रूप से शक्ति मानते हुए तात्पर्यवृत्ति द्वारा और दूसरे (अन्विताभिधानवादी) वाक्य में प्रन्वित पदों में ही अर्थ-बोध की शक्ति मानते हुए स्वतन्त्र रूप से अर्थात् वाच्यार्थ द्वारा ही-(वाच्य एव वाक्यार्थः)-पूरे वाक्य का अर्थ-बोध मानते हैं। उनका कथन है कि वाक्य में अन्वित पद ही (स्वतन्त्र रूप से नहीं) अर्थ-बोध कराते हैं अर्थात् अर्थ-बोध वाक्यार्थ द्वारा पूरे-पूरे वाक्य का स्वयं ही होता है, इसीलिए वे अन्विताभिधानवादी कहलाते है-'अन्वितानामेवपदार्थानामभिधानं शब्दैःप्रति पादनमिति ये वदन्ति ते अन्धिताभिधानवादिनः । इनके अनुकूल वाक्य से अलग होकर पद कोई अर्थ नहीं रखते हैं । ये लोग वाक्य को ही विचार की इकाई (Unit of Thought) मानते हैं । वाक्यों में प्रयोग द्वारा विश्लिष्ट होकर पदों का अर्थ जाना जाता है । पदों से वाक्य का अर्थ नहीं बनता वरन् वाक्य द्वारा ही पदों का अर्थ व्यवहार से ज्ञात होता है । यह बात पाश्चात्य विचारकों की ही देन नहीं है।