पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२७२

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area NOn....TamanaNANummaam- २३६ सिन्तान्त और अध्ययन सब लोग जानते हैं कि परशुरामजी ने अपनी माता को मार डाला था। यहाँ मुख्यार्थ का बाध होता है। यहाँ लक्षणा से उलटा अर्थ लगेगा और व्यञ्जना यह है कि माता के प्रति जब तुम्हारी यह कृतज्ञता रही तो गुरु के प्रति कर्त्तव्य पालन की डींग मारना वृथा है। जहाँ व्यङ्गयार्थ की व्याच्यार्थ की अपेक्षा प्रधानता होती है वहाँ तो ध्वनिकाव्य होता है, जहाँ व्यङ्गयार्थ की प्रधानता नहीं होती है वहाँ काव्य ___गुणीभूतव्यङ्गय का उदाहरण बन जाता है। यह कई गुणीभूतव्यङ्गय प्रकार का होता है। व्यङ्गचार्थ जहाँ बहुत ही स्पष्ट हो जाता है वहाँ उसमें चमत्कार नहीं रहता है। इसको अगूढ़व्यङ्गय कहते हैं, इसका उदाहरण भिखारीदासजी ने इस प्रकार दिया है :- 'शुनवन्तन में जासु सुत, पहिले गनो न जाइ । पुत्रवती वह मातु, तब, बन्ध्या को टहराइ ॥' --भिखारीदाल कृत काव्यनिर्णय (गुणीभूतव्यङ्ग'य-वर्णन ५) माता पुत्रवती तो होती ही है क्योंकि जिसके सुत होता है वह पुत्रवती कही ही जायगी किन्तु पुत्र के अगुणी होने के कारण यह पद (पुत्रवती होने . का) सार्थक नहीं होता है। इसमें जो व्यङ्गय है वह बहुत ही स्पष्ट है और बन्ध्या किसको कहते हैं इससे और भी स्पष्ट हो जाता है। दूसरा मुख्य भेद अपराङ्ग गुणीभूतव्यङ्गय का है। जब रस या भाव अपने अधिकार से अङ्गी होकर नहीं आता है और दूसरे रस का अङ्ग बनकर श्राता है तब उसमें इतना चमत्कार नहीं रहता है और वह गुणीभूतव्यङ्गय का उदाहरण बनता है और ऐसी अवस्था म वह अलङ्कार्य न रहकर अलङ्कार हो जाता है। ___गुणीभूत रस से रसवत् अलङ्कार होता है। गुणीभूत भावप्रेयस अलङ्कार ., ' होता है । गुणीभूत रसाभास तथा भावाभास उर्जस्वी अलङ्कार होते हैं।