पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२७८

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२४६ सिद्धान्त और अध्ययन जातिवाचक बोधों ( Concepts ) से सम्बन्ध रखती है और जिसमें सिद्धान्तविधायक दर्शन, विज्ञान श्रादि का उदय होता है। व्यवहारात्मक में दो प्रकार की क्रियाएँ होती है...एक आर्थिक (1Economic) और दूसरी नैतिक (Ethical)। आत्मा का स्वयंप्रकाशज्ञान बौद्धिक ज्ञान से स्वतन्त्र है। वह एक प्रकार की अलौकिक शक्ति है जो एक क्षण में प्राकृतिक दृश्यों को अपनाकर उनको साकार और सुन्दर रूप दे देती है। यही आकार देने की क्रिया अभिव्यक्ति है किन्तु है यह प्रान्तरिक । स्वयंप्रकाशज्ञान का अभिव्यक्ति से सहज सम्बन्ध है :--- _ 'The spirit does flot obtitin intuitions, otherwise than by making, forming, expressing.' --Croce (Aesthetic--Intuition and Expression,page 18) कलाकार तभी कलाकार है जब वह स्वतन्त्र स्वयंप्रकाशज्ञानमयी स्फूत्ति से प्रेरित होता है । जब वह एक अनिर्वचनीय रूप में अपने विषय से अपने को पूर्ण पाता है तब इस अभिव्यक्ति का सफल उद्धाटन होता है और तभी सौन्दर्यात्मक कला की सृष्टि होती है। कोचे ने कला ( Art ) और कलाशातियों (Works of art ) में अन्तर किया है। कोचे के मत से पराली कला आन्तरिना ही है । वह स्वयं-- प्रकाशज्ञान की प्राध्यात्मिक क्रिया है । अभिव्यक्ति उसके साथ स्वाभाविक रूप से लगी होती है किन्तु वह अभिव्यक्ति होती अान्तरिक ही है । कलाकृतियाँ (काव्य, चित्र, मूत्ति आदि) उस पान्तरिक स्वयंप्रकाशज्ञानजन्य अभिव्यक्ति की वाह्य रूप और स्थायित्व देकर पुनः जाग्रत करने की साधनस्वरूपा हैं । देखिए क्रोचे स्वयं क्या कहते हैं :- "And what are those combinations of words which ture called. poetry, prosc, poems, novels, romaunces, tragedies or comedies, but physical stimulants of repro- duction.' . -Croce (Aesthetic --Nature and Art, page158) सफल अभिव्यक्ति ही कला है। नोचे के लिए 'सफल' विशेषण भी अनावश्यक है क्योंकि अभिव्यक्ति जब तक सफल नहीं होती तब तमा अभिव्यक्ति नहीं कहलाती । अभिव्ययित ही सीन्दर्य है-'We muy cle:finice beauty Hus.. successful expression, or bettal, Rs expression and • nothing more, because expression, when it is not