पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२८१

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अभिव्यञ्जनावाद एवं कलाबाद-मतभेद का स्पष्टीकरण क्रोचे वस्तुहीन अभिव्यञ्जना नहीं मानते बरन् उनके मत से वस्तु का अस्तित्व होते हुए भी उसकी रूप-रेखा अभिव्यञ्जना द्वारा बनती है । वस्तु या Content के सम्बन्ध में वे कहते हैं-It is true भतभेद का that the Content is that which is conver- स्पष्टीकरण table into form but it has no determin- able qualities untill this transformation takes place'-अर्थात् यह ठीक है कि वस्तु वह है जो आकार में परिवर्तनीय हो सके किन्तु उसमें कोई निर्धारित करने योग्य गुण नहीं आते जब तक कि उसका आकार में परिवर्तन न हो जाय । वे वस्तु को अस्तित्वशून्य नहीं वरन् हमारी स्वयंप्रकाशजन्य क्रिया के बिना ज्ञेय नहीं मानते । आचार्य शुक्लजी के साथ मैं भी कोचे का इस बात का विरोध करूँगा कि वस्तु का अस्तित्व मानते हुए भी वह उसे नितान्त गौण बना देता है। यह उसकी हठधर्मी है कि यह स्वीकार करते हुए भी कि जिसने समुद्र देखा नहीं उसकी अभिव्यक्ति भी नहीं कर सकता, वह (कोचे) बाद में यह कह देता है कि इससे यह सिद्ध नहीं होता कि हमारी अभिव्यक्ति की शक्ति उत्तेजक (Sti- mulus) अथवा इन्द्रियों (Organs) पर आश्रित है :- ___ 'Thus, he who has never had the impression of the sea will never be able to express it,...... This, however, does not establish a dependence of the expressive function on the stimulus or on the organ.' -Croce (Aesthetic-Intuition and Art, Page 32 & 33) स्मृति हमको चाहे जितना सहारा दे हमको अन्त में अपने मन पर पड़ी हुई छापों (Impressions) पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। शुक्लजी के साथ यहाँ तक सहमत रहते हुए भी हमको दो बातों के सम्बन्ध में सावधान रहना पड़ेगा। पहली बात यह है कि जहाँ क्रोचे कहता है कि- 'The aesthetic is form and nothing but form' (सौन्दर्यानुभूति केवल प्राकार है और उसके अतिरिक्त कुछ नहीं)-वहाँ प्राकार (form) से उसका अभिप्राय वस्तुशून्य आकार नहीं वरन् आध्यात्मिक क्रिया (Spiri- tual Activity ) या स्वयंप्रकाशज्ञान (Intuition) द्वारा परिमार्जित और रूप-रेखा दी हुई वस्तु से है । उसके 'Form' (माकार) में वस्तु और प्राकार दोनों ही सम्मिलित हैं, इसलिए उसको हम कोरा आकारवादी, जैसा कि शुक्लजी' में उसे बतलाया है, प्रश्नवाचक चिह्न के साथ ही कह सकते हैं। दूसरी बात यह