पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२८४

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awayerasANMann. २४४ सिद्धान्त और अध्ययन अब हम देख सकते हैं कि क्रोचे का 'उक्ति-वैचित्र्य' से कहाँ तक सम्बन्ध है ? क्रोचे ने उक्ति को प्रधानता दी है, उक्ति-वैचित्र्य को नहीं । उराके मत से सफल अभिव्यक्ति या केवल अभिव्यक्ति कला या सौन्दर्य अभिव्यजनावाद है क्योंकि अभिव्यक्ति यदि सफल नहीं है तो अभिव्यक्ति और वक्रोक्तिवाद ही नहीं है। । इसीलिए अभिव्यञ्जनावाद और वक्रोक्तिवाद की समानता नहीं है, जैसा कि शुक्लजी ने माना है-'क्रोचे का 'अभिव्यन्जनावाद' सच पूछिए तो एक प्रकार का 'वक्रोक्तिवाद' है। संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में भी कुन्तल नाम के एक प्राचार्य 'वक्रोक्तिः काव्यजीवितम्' कहकर उठे थे ।' (चिन्तामणि : भाग २, काव्य में अभिव्यञ्जनाबाद, पृष्ठ २१२)--इस सम्बन्ध में अभिव्यञ्जनावाद और वक्रोक्तिवाद का अन्तर सुधांशुजी ने बड़े स्पष्ट शब्दों में बतलाते हुए दो बातों की ओर ध्यान आकर्षित किया है :---- (क) 'वक्रोक्तिवाद की प्रकृति अलङ्कार की ओर विशेष तत्पर दिखाई देती है, लेकिन अभिव्यअनावाद का बाह्य रूप से अलक्षार के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। अलङ्कार अनुगामी होकर अभिव्यञ्जना के पीछे चल सकता है, वक्रोक्ति के साथ की भाँति सहगामी होकर नहीं ।' (ख) 'अभिव्यञ्जनावाद में वक्रतापूर्ण उक्तियों का तो मान है ही, साथ ही स्वभावोक्तियों के लिए भी उसमें यथेष्ट स्थान है। जिस उक्ति से किसी दृश्य का मनोरम बिम्बग्रहण हो वह वक्रताहीन रहने पर भी अभियानावाद की चीज है। -काव्य में अभिव्यञ्जनाबाद (अभिव्यज्जनाबाद और कला, पृष्ठ ५१) वक्रोक्तिकार नित्य की बोलचाल की रीतिसे सन्तुष्ट नहीं होते- 'वक्रोक्ति प्रसिद्धाभिधानव्यतिरेकिणी विचित्रवाभिधा' (वक्रोक्तिजीवित, ११११ की टीका ) । मैं तो यह कहूँगा कि 'अभिव्यञ्जनावाद' में स्वभावोक्ति और वक्रोक्ति का भेद ही नहीं है । उक्ति केवल एक ही प्रकार की हो सकती है। यदि पूर्ण अभिव्यक्ति वक्रोक्ति द्वारा होती है तो वही स्वमायोक्ति या उक्ति ह, वही कला है । वाग्वैचित्र्य का मान वैचित्र्य के कारण नहीं है वरन् यदि है '... We may define beauty as suckassful expression, or better, as expression find nothing more, because ex- pression, when it is not succussful, is not expression.' -Croce (Aesthetic feelings, Page 129)