पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२९८

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२६२ सिद्धान्त और अध्ययन सूत्र हैं। पाश्चात्य देशों में अरस्तू के काव्य-सिद्धान्त से लगाकर कालरिज, एडीसन, वर्ड्स्व र्थ, वाल्टर पेटर, रिचर्डस, कोचे, स्पिन्गन, टी. एस. इलियट, मिडिल्टन मरे, जेम्स स्काट आदि के सैद्धान्तिक ग्रन्थ और इस देश में भारत- मुनि का 'नाट्यशास्त्र', दण्डी का 'काव्यादर्श', क्षेमेन्द्र का 'कविकण्ठागरण' राजशेखर की 'काव्यमीमांसा', मम्मट का 'काव्यप्रकाश', विश्वनाथ का 'साहित्य- दर्पण', पण्डितराज जगन्नाथ का 'रसगङ्गाधर' आदि इसी प्रकार की आलोचना के ग्रन्थ हैं। हिन्दी में रीतिकाल के लक्षण-ग्रन्थ, ( जैसे देव के 'भावविलारा' और 'शब्दरसायन' नाम के ग्रन्थ, पद्माकर का 'जगहिनोद', भिखारीदारा का 'काव्यनिर्णय' आदि) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की 'नाटक' नाम की पुस्तिका, पण्डित महावीरप्रसाद द्विवेदी के "रसज्ञ-रञ्जन' में प्रकाशित 'कवि और कविता' शीर्षक लेख, डाक्टर श्यामसुन्दरदास का 'साहित्यालोचन', सूर्यकान्त शास्त्री की 'साहित्य-मीमांसा', प्राचार्य शुक्लजी की 'चिन्तामणि', सुधांशुजी का 'काव्य में अभिव्यञ्जनावाद', पुरुषोत्तमजी का प्रादर्श और यथार्थ', सेठ कन्हैया- लाल पोद्दार का 'काव्य कल्पद्रुम' रामदहिन मिश्र का 'काव्यालोक' आदि इसी प्रेकार की आलोचना में परिगणित होते हैं। उर्दू में शम्राउलउलगा मोलाना हाली की 'मुकद्दमा' नाम की पुस्तक का बहुत मान है। इस प्रकार की पालो. चना को अंग्रेजी में 'Speculative Criticism' कहते है। ___ सैद्धान्तिक पालोचना का व्यावहारिक प्रयोग ही निर्णयात्मणा मालोचना का रूप धारण कर लेता है । निर्णयात्मक आलोचन को अँग्नेजी में 'Juclicial Criticism' कहते हैं। पाश्चात्य देशों में अरस्तू के निर्णयात्मक आलोचना काव्यशास्त्र (पोइटियस) के नियम कुछ रामय तक वेद के विधि-वाक्यों की भांति प्रादरणीय और अनुकरणीय समझे जाते थे । हमारे यहाँ भी बहुत दिनों तक मम्मट और विश्वनाथ के बत- लाये हुए गुण-दोषों के आधार पर काव्य को उपादेय या हेय ठहराने की प्रथा बनी रही। निर्णयात्मक पालोचक परोक्षक की भौति काव्य के गुण-दोषों के आधार पर उसे श्रेणीबद्ध करता है । कवि-कुल-गुरु कालिदास के निम्नोल्लिखित श्लोक में निर्णयात्मक आलोचना के आदर्श का पूर्वरूप दिखाई पड़ता है :---- 'तं सन्तः श्रोतुमर्हन्ति सदसद्यक्तिहेत्तयः । हेम्न: संलक्ष्यते अग्नौ विशुद्धिः श्यामिकामा ---रघुयेश (११०) अर्थात् उसको (रघुवंशकाव्य को) संत लोग सुनने के अधिकारी हैं। अग्नि में ही स्वर्ण के खरे और खोटे होने का पता लगता है। कालिदास ने परीक्षा __