पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/३०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सिद्धान्त और अध्ययन लेखक को मुख्यता देनेवाली अालोचना को व्याख्यात्मक या वैज्ञानिक (Inductive) आलोचना कहते हैं। ____ व्याख्यात्मक आलोचना का विशेष विवेचन मोल्टन (Moulton) ने किया है। उन्होंने निर्णयात्मक आलोचना और व्याख्यात्मक पालोचना में तीन भेद बतलाये हैं। पहला भेद तो यह है कि निर्णयात्मक आलोचना उत्तम-मध्यम का श्रेणी-भेद (जैसा ध्वनिकाव्य और गुणीभूतव्यङ्गय में है) स्वीकार नहीं करती है । व्याख्यात्मक आलोचना केवल प्रकार-भेद मानती है । वह वैज्ञानिक की भांति वर्गभेद तो करती है किन्तु उनमें ऊँच-नीच का भेद नहीं बतलाती। वैज्ञानिक लोग मञ्जरीवाले नाज ( जैसे गेहूँ, जौ आदि), फलीवाले नाज (जैसे चने, मटर, उरद) की विशेषताएँ बतला देंगे किन्तु उनके प्राधार पर किसी को नीचा और किसी को उँचा नहीं ठहरायेंगे। निर्णयात्मक और व्याख्यात्मक आलोचना का दूसरा भेद यह है कि निर्णयात्मक आलोचना नियमों को राजकीय नियमों की शांति किसी अधिकार से दिया हुया मानती है और उसका पालन अनिवार्य समझती है किन्तु व्याख्यात्मक आलोचना उन नियमों को अधिकार द्वारा आरोपित नहीं मानती वरन् वह उनकी ही प्रकृति के नियम बतलाती हैं । पृथ्वी अपनी ही गति और नियम से चलती है, किसी बाहरी अधिकारी के बनाये नियम पर वह लगकर नहीं काटती । नियम बाहर से लगाये हुए नहीं है वरन् गति की एकाकारिता के सूत्र हैं, इसलिए सब कवियों को एक लाठी से नहीं हाँका जा सकता। हर एक कवि के उसकी प्रकृति और आत्मभाव के अनुकूल पृथक्-पृथक् नियम होरो । इस बात को हम यों कह सकते है कि व्याख्यात्मक आलोचना लेखक और कवि के प्रात्मभाव की विशेषताओं को स्वीकार करती है और निर्णयात्मक आलोचना उसे नियमों की निर्जीव पत्थर की कसौटी पर कसना चाहती है। तीसरा भेद दूसरे भेद का फलस्वरूप है, वह यह कि निर्णयात्मक आलो. चना नियमों को अगतिशील मानती है, व्याख्यात्मक पालोचना नियमों को प्रगतिशील बतलाती है। ___ व्याख्यात्मक आलोचना के सबसे बड़े प्रचारक शुक्लजी हैं किन्तु उनकी पालोचना में व्याख्या के साथ मूल्य का भी प्रश्न लगा हुआ है । लोक-संग्रह के आधार पर ही उन्होंने तुलसी, सूर और जायसी को श्रेणीबद्ध किया है। वास्तव में निर्णयात्मक और व्याख्यात्मक आलोचना बहुत अंश में एक- दूसरे पर निर्भर रहती है। बिना व्याख्या के निर्णय में यथार्थता नहीं पाती है। व्याख्या में भी थोड़ा-बहुत शास्त्रीय नियमों का सहारा लेना पड़ता है और