पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/३०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७० सिद्धान्त और अध्ययन सम्बन्ध में श्रीशिवनाथ एम. ए. की निम्नोल्लिखित पवितयाँ पठनीय है :-- __'यह तो निश्चित ही है कि समालोचक अपने देश-काल से किसी-न-किसी रूप में प्रभावित रहता है। उसकी अपनी भी रुचि होती है, पर इसके होते हुए भी, उसमें एक प्रकार की तटस्थता का होना चान्छनीय है। इसी को मेथ्यू अानल्ड ने समालोचक की तटस्थ रुचि (Disinterested Interests) कहा है।.....तो इस प्रकार की आलोचना में तटस्थता की बहुत श्राव- श्यकता पड़ती है और इसके द्वारा समालोचक निर्णयकारी समालोचक ( Judicial Critic ) होने के दोष से बच जाता है । वह सु और कु का निर्णय पाठक पर छोड़ देता है । -अनुशीलन (पृष्ठ ५३) हिन्दी-साहित्य-क्षेत्र में देव और बिहारी की तुलना को कुछ दिनों बड़ी धूम- धाम रही। इस सम्बन्ध में पण्डित पद्मसिंह शर्मा, पण्डित कृष्णबिहारी मिश्र के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है वैसे तो इन दोनों आलोचकों में उपर्युक्त तटस्थता का अभाव है किन्तु पण्डित कृष्ण बिहारी में यह गण अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में पाया जाता है। - एक प्रकार की गणनात्मक वैज्ञानिक आलोचना और भी चल रही है। उसमें कवि के शब्दों की सारिणी बनाकर बावि की मनोवृत्ति की परीक्षा तथा उसकी हस्तलिपि आदि की लिपि-विशेषज्ञों के नियमों को श्राधार पर जांच- पड़ताल होती है । शब्दों की सारिणी बनाना भी कवि की मनोवैज्ञानिक मालो- चना में सहायक होता है । डाक्टर सूर्यकान्त शास्त्री ने गोस्वामी तुलसीदासजी तथा जायसी की सारणी बनाकर बहुत उपयोगी कार्य किया है। अभी उन सारणियों के आधार पर विवेचना की आवश्यकता है । सारिणी धनाने की प्रथा नई नहीं है। हमने बहुत-रो कथावाचकों के मुख से सुना है. कि चकोर शब्द तथा और भी बहुत से शब्द रामचरितमानस में किन-किन चौपाइयों में पाये हैं। . . .... ...... . .... .: . . अाजकल शब्दों की जांच नहीं वरन् इस बात की भी जांच होने लगी है कि अमुक कथि में गति-चित्रः अधिक पाये है अथवा चक्षुष चिन धा गन्ध चित्र अधिक पाये है। अँग्रेजी लेखकों के सम्बन्ध में कहा जाता है कि पोष ..... यहाँ पर पाठकों की जानकारी के लिए ऐसे चित्रों के वो एक नमूगे से देना अनुपयुक्त न होगा। चातुप चित्र तो कविता में बहुसाइत से मिताल हैं, फिर भी एक उदाहरण पर्याप्त होगा।