पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/३१

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( २७ ) और 'सिद्धान्त और अध्ययन' का पहला संस्करण प्रकाश में आया। _ 'नवरस' में भूलें अवश्य है लेकिन उसमें गुण भी हैं। वह सबसे पहली पुस्तक है जिसमें शास्त्र की पीटी हुई लकीर से हटकर नये दृष्टिकोण से रस के सिद्धान्तों पर विचार किया गया है, वह पहली पुस्तक है जिसमें 'काव्यप्रकाश' और 'साहित्यदर्पण' के उदाहरणों को छोड़ हिन्दी के प्राचीन और नवीन कवियों के उदाहरणों को मान दिया गया है ( उममें कुछ उदाहरण अनुपयुक्त भी हैं ) और उसमें ही पहली बार रस के मनोवैज्ञानिक पक्ष को प्रकाश में -लाने का प्रयत्न किया गया तथा स्थायीभावों का मौलिक सहजवृत्तियों (..Primary Instincts ) से सम्बन्ध जोड़ा गया है। शास्त्र से स्वतन्त्र होकर लिखने का यह अर्थ नहीं कि शास्त्र की बातों का मन चाहे जैसा उल्लेख किया जाय । यदि कहीं मुझसे अज्ञानवश ऐसा हुआ हो तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ और सुधार करने के लिए तैयार हूँ। मैं अपनी सफाई देने में प्रसङ्ग से हट गया किन्तु यह वर्तमान पुस्तक के जन्म का इतिहास बतलाने के लिए आवश्यक है। पाठक इसे क्षमा करेंगे । अपने उल्लेख के पूर्व मुझे प्राचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के 'रसज्ञ- रजन' का उल्लेख पहले कर देना चाहिए था। उसका पहला प्रकाशन संन्

१९२० में हुआ था। उसमें कविता की परिभाषा के साथ ( जो अँग्रेजी

भाषा के कवि मिल्ला की परिभाषा से प्रभावित है ) कवि-शिक्षा की बहुत-सी बातें दी गई हैं। उस पुस्तक पर राजशेखर, क्षेमेन्द्र और मौलानाहाली का सम्मिलित प्रभाव है, फिर भी द्विवेदीजी के विचारों में स्वतन्त्रता और मौलि- कता है। उनके काव्य-सम्बन्धी विचारों में नीचे की बातें बड़ी स्पष्टता से हमारे सामने आती हैं :- ... .

-::- (१) कविता में धारण लोगों की अवस्था, विचार और मनो-

विकारों का वर्णन हो। (२) उसमें धीरज, साहस, प्रेम और दया आदि गुणों के उदाहरण (३) कल्पना सूचम और उपमादिक अलङ्कार गूढ न हो। (४) भाषा सहज, स्वाभाविक और मनोहर हो । (५) छन्द सीधा, सुहावना और वर्णन के अनुकूल हो ।' -रसज्ञ-रन्जन (पृष्ठ १६) द्विवेदीजी कविता में मिल्टन के बतलाये हुए गुण चाहते थे-'कविता सावी हो, जोश से भरी हो और असलियत से गिरी न हो' (रसंज्ञ-रजन,