पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/५०

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१२ सिद्धान्त और अध्ययन सौन्दर्य वा रमणीयता का जो लक्षण है वही ध्वनि में भी घटता है । केवल हाथ-पैर, नाक-कान से पूर्ण होना ही सौन्दर्य नहीं है, सौन्दर्य उससे ऊपर की चीज है:- 'प्रतीयमानं पुनरन्यदेववस्त्वस्ति पाणीपु महाकवीनाम् । यत्तत्प्रसिद्धावयवातिरिक्त विभाति लावण्यमिवानासु ॥' - -ध्वन्यालोक (१।४) ध्वनि उसी अवर्णनीय 'और कछु' में आती है । ध्वनि को ही प्रतीयमान अर्थ भी कहते हैं। यह विभिन्न अवयवों के परे रहने वाले स्त्रियों के सौन्दर्य की भाँति महाकवियों की वाणी में रहती है। ____ध्वनि में काव्य के सौन्दर्य के एक विशेष एवं अनिवर्चनीय उपादान की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है । यह सम्प्रदाय करीब-करीब रस-सम्प्रदाय के बराबर ही लोकप्रिय हुआ है। मुक्तककाव्य के मूल्याङ्कन में इसको विशेष .. मान मिला क्योंकि स्फुट पद्यों में प्रायः ऐसा रस-परिपाक नहीं होता जैसा कि प्रबन्धान्तर्गत पद्यों में अथवा नाटकों में। ध्वनि-सम्प्रदाय के सम्बन्ध में भी यह कहा जा सकता है कि वह सौन्दयों- त्पादन और रस-सृष्टि में प्रधानतम साधन है किन्तु ररा का स्थान नहीं ले सकता । अलङ्कार, वक्रोक्ति, रीति और ध्वनि संब ही सौन्दर्य के साधन हैं। रमणीयता वा सौन्दर्य भी तो स्वयं अपने में कोई अर्थ नहीं रखता, वह किसी सचेतन के लिए होता है और उसकी सार्थकता उसी को प्रसन्नता देने में है ..... 'जङ्गल में मोर नाचा किसने जाना' ? सौन्दर्य, सौन्दर्यास्वादक की अपेक्षा रखता है । सौन्यास्वादन का अन्तिम फल है आनन्द'; वही रस है.---'रसी धैला । 'रसंघ वायं लब्ध्वाऽऽनन्दी भवति' (तैत्तरीय उपनिषद्, ११७।१)...अानन्द एक ऐसी संज्ञा है जिस पर रुक जाना पड़ता है, वह स्वयं ही साध्य है। ५. रस-सम्प्रदाय :--इसका साहित्य में व्यापक प्रभाव रहा है। इस सम्प्रदाय के मूल प्रवर्तक हैं नाट्यशास्त्र के कर्ता भरतमुनि (ईसा पूर्व पहली शताब्दी से पूर्व), उनके पश्चात् कुछ दिनों अर्थात् नवीं शती तक अलङ्कार- सम्प्रदाय का प्राधान्य रहा । वे लोग यद्यपि रस का अस्तित्व स्वीकार करते थे तथापि महत्ता अलङ्कारों को ही देते थे। श्रानन्दवर्धन ने रसध्वनि को प्रधानता देकर अलङ्कारों को पीछे हटा दिया। अभिनवगुप्त ( १० वीं शताब्दी) ने ध्वन्यालोक की टीका लोचन तथा नाट्यशास्त्र की टीका अभिनवभारती लिख- कर, बहुत-सी रस-सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाकर और अन्त में विश्यनाथ ने रस को काव्य की आत्मा घोषित कर रस को पूरा-पूरा महत्त्व दिया । हिन्दी