पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/५६

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सिद्धान्त और अध्ययन पाश्चात्य देशों में कल्पनातत्त्व, बुद्धितत्त्व और शैलीतत्त्व को भी भाना है। कल्पना भाव को पुष्ट करती है, उसके लिए काव्य के तत्व सामग्री उपस्थित करती है और साथ ही अभिव्यक्ति में भी सहायक होती है। कल्पना का सम्बन्ध मानसिक सृष्टि से है, यह चाहे कवि की भावनाओं के अनुकूल ब्रह्मा की सृष्टि का पुन- निर्माण हो और चाहे उसमें जोड़-तोड़ और उलट-फेर करके बिल्कुल नई (किन्तु सुसंगत और सुसम्भव) रचना हो । बुद्धितत्त्व कल्पना को उच्छृ साल होने से बचाये रखता है और भावों को भी मर्यादा के भीतर रखता है । कठोप- निषद् में बुद्धि को इन्द्रिय-रूपी अश्वों की लगाम कहा है, वह इन्द्रियों की ही लगाम नहीं है वरन् कल्पना के घोड़ों की भी लगाम है । हमारे यहाँ औचित्य, दोषों और क्रम, प्रमाण, सार, एकावली प्रादि अलङ्कारों में कहीं तो पूरे बुद्धितत्त्व का और कहीं उसके भावमय आभास का ( जैसे काव्यलिङ्ग आदि में) समावेश हो जाता है । बुद्धितत्त्व रो 'सत्य' और 'शिवं' की रक्षा होती है और कल्पना तथा भावतत्त्व से 'सुन्दरम्' का निर्माण होता है । कल्पना से 'सुन्दरम्' का शरीर बनता है और भावना में उसकी आत्मा रहती है । 'सुन्दरम्' रस का विषयगत पक्ष है । शैली का सम्बन्ध अभिव्यक्ति से है, उसके द्वारा कवि के हृदय के साथ पाठक के हृदय का सहस्पन्दन कराया जाता है । इस तत्त्व को हमारे यहाँ अलङ्कार, रीति और शब्द-शक्तियों में भी आश्रय मिला है। काव्य की परिभाषाओं में इन्हीं तत्त्वों में से किसी एक या एक से अधिक तत्त्वों को मुख्यता दी जाती है। हमारे यहाँ काव्य की अनेकों परिभाषाएँ हैं किन्तु उनमें तीन मुख्य हैं। . मम्मटाचार्य : मम्मटाचार्य ने दोषरहित गुणवाली और कभी अनलंकृत भी, शब्द और अर्थमयी रचना को काव्य कहा है :---- 'तददोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुन: क्यापि' -काव्यप्रकाश (111) इस परिभाषा में गुणों के भाव और दोषों के प्रभाव को मुख्यता दी गई है । अलङ्कारों को नितान्त आवश्यक नहीं माना है क्योंकि जिसके बिना भी कोई चीज कभी रह सके उसे उसके लिए आवश्यक नहीं कह सकते हैं । प्राचार्य विश्वनाथ ने इस परिभाषा की आलोचना करते हुए कहा है कि बड़ी उत्तम कवि- तामों में भी थोड़ा-बहुत दोष निकल पाता है, इसलिए ही वे कविता की श्रेणी से बाहर नहीं निकाल दी जाती, 'प्रदोषी' एक नकारात्मक लक्षण है । अलकार 'जब लक्षण में आवश्यक नहीं तब उनका उल्लेख ही वृथा है। वैसे काव्य-