पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/६९

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काव्य और कला-कला और प्रकृति गया त्यों-त्यों कला की परिभाषा भी व्यापक होती गई और काव्य का क्षेत्र भी विस्तीर्ण होता गया।' -अशोक के फूल (पृष्ठ १३०) __शुक्लजी ने उक्तिवैचित्र्य को सूक्ति कहा है, काव्य नहीं कहा है किन्तु इन दोनों के बीच में कोई विभाजक रेखा खींचना कठिन है । नीची श्रेणी का भी काव्य काव्य ही होता है। ____ काव्य की परिभाषा पर विचार करने से पूर्व प्रकृति के साथ उसके सम्बन्ध को समझ लेना आवश्यक है । मनुष्य संसार में जन्म लेता है । वह प्रकृति को • अपनी सहचरी के रूप में पाता है किन्तु वह सहरी सदा कला और प्रकृति उसके मनोनुकूल नहीं होती । उसमें चाञ्चल्य और स्वेच्छा रहती है । वैज्ञानिक और कलाकार दोनों ही प्रकृति-सह- चरी की उपासना करते हैं, वैज्ञानिक उसे उपास्य से परिचारिका बनाता है, कलाकार उसे सहचरी ही बनाये रखता है किन्तु साज-सम्हाल द्वारा अधिक मनोनुकूल बना लेता है। प्रकृति अपने विकास में कुछ मन्द गति से चलती है । कलाकार और वैज्ञानिक उसकी गति की दशा को पहचानकर उसे अपने सामने ले आते हैं। प्रकृति गुण-दोषमय है और कभी-कभी हमको अपने वशी- भूत भी कर लेती है । कलाकार प्रकृति पर अपनी छाप डाल उसे स्व भावानु- वर्तिनी बना लेता है। प्रकृति परमेश्वर की कला है तो कला मानव की कला है। कला में मनुष्य के कर्तृत्व का भाव रहता है किन्तु उसके लिए कृत्रिमता आवश्यक नहीं। कला इतनी स्वाभाविक हो सकती है कि वह प्रकृति के बिल्कुल निकट आजाय और प्रकृति में इतना सौन्दर्य दिखाई पड़ सकता है कि वह कला की कोटि में गिनी जाय, तभी फूल-पत्तियों में लोग परमात्मा की कारीगरी की प्रशंसा किया करते हैं। किन्तु प्रकृति और कला दोनों की सीमाएँ अलग है। कला प्रकृति पर मनुष्य की विजय है, प्रकृति में मनुष्य की शक्ति की सीमा है। यहाँ पर प्रकृति का अर्थ अपराजित प्रकृति है। सच्ची कला प्रकृति और मानव के सामञ्जस्य में है। ___ हमारे यहाँ की अपेक्षा कला का सैद्धान्तिक विवेचन पाश्चात्य देशों में कुछ . अधिक हुआ है। इसका यह अभिप्राय नहीं कि हमारे कला की परिभाषा यहाँ कला के सैद्धान्तिक विवेचन का अभाव है। हमारे यहाँ कला के व्यावहारिक विवेचन की ओर अधिक प्रवृत्ति रही, यह देश-देश की परम्परा का भेद है। . पाश्चात्य देशों में कला की परिभाषाएँ प्रारम्भ में तो वाह्य से अन्तर की ओर गई है अर्थात् उनमें प्राकृतिक अनुकरण के साथ मानसिक पक्ष की ओर