पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/७०

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३२ सिद्धान्त और अध्ययन संकेत-मात्र रहता है ( जैसे अरस्तू की परिभाषा में, जिसमें कि काला अनुकृति मानी गई है) फिर क्रमशः इनमें भीतर से बाहर की ओर प्रक्षेपण की प्रवृत्ति पाई। क्रोचे ने अभिव्यक्ति ( सो भी मानसिक ही ) को ही कला माना है। प्रकृति की न्यूनता और अपूर्णता को अरस्तू ने भी स्वीकार किया है । काला उसी न्यूनता को पूरा करती है । गुप्तजी ने इस भाव की बड़ी सून्दर अभिव्यक्ति की है :-- 'हो रहा है जो जहाँ, सो हो रहा, यदि वही हमने कहा तो क्या कहा ? किन्तु होना चाहिये कब क्या, कहाँ, जर.क्त करती है कलां ही यह यहाँ, -~-साकेत (प्रथम सर्ग, पृष्ठ २१) . इसलिये एक प्राचार्य ने कला को वास्तविकता का उसके मानसिक यज्ञ में प्रस्थापन कहा है-'The presentation of the real in its timental aspect'। इस प्रकार कला वास्तविकता का प्रावीकरण बन जाती है। यह आदर्श मन में रहते हैं और इस प्रकार वह आदी के प्रक्षेपण (Projection) का रूप धारण कर लेती है। हेगिल का कथन है कि सौन्दर्य विचार या आदर्श की प्रकृति में झलक है-'Beauty is the shining of the idlext through matter.' । प्राकृतिक सौन्दर्य ईश्वरीय सौन्दर्य का भागास है,गाला उसी आभास की पुनरावृत्ति है किन्तु उसके मत से इरा पुनरावृत्ति में विचार और प्रादर्श की चमक ज्यादह रहती है । इस प्रकार की परिभाषाएँ तात्त्विक (metaphysical ) कही जाती हैं। ... इस दृष्टिकोण के अतिरिक्त और भी दृष्टिकोणों से कला की परिभाषाएँ की गई हैं । हर्वर्ट स्पेन्सर आदि ने कला को अतिरिक्त शक्ति के अथवा फालतू उमङ्ग के प्रसार और खेल की प्रवृत्ति का फल बतलाया है । यह परिभाषा प्राणि- शास्त्र-सम्बन्धी है और यह वास्तव में कला की मूल प्रवृत्ति या उसके प्रजनन की व्याख्या करती है। ...: 'कुछ परिभाषाएँ, कला किसकी अभिव्यक्ति है, इसका उत्तर देती हैं। कला रेखाओं, रङ्गों, गतियों, ध्वनियों और शब्दों में मनुष्य के मनोगत भावों की वाह्याभिव्यक्ति है । कतिपय परिभाषाएँ, कला हमको क्या देती है, इरा प्रश्न का उत्तर देती हैं। कुछ लोग तो कला को शुद्ध अर्थात् उपयोगिता से असम्बद्ध प्रसन्नता या प्रानन्द का जनक मानते हैं। ये लोग सौन्दर्यवादी या कलावादी (Aesthetes ) कहलाते हैं। कोई-कोई प्राचार्य इसका सम्बन्ध मानव-हित