पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काव्य और कला-कलाओं का वर्गीकरण २४ भारतीय चित्रकला का जो वर्णन है वह नितान्त भर्ती की चीज नहीं है । रीति- काल की कविता तथा उस काल की कलाओं में विशेष साम्य है । दोनों में ही विलास वैभव का चित्रण है । सभी पाश्चात्य विचार हेय नहीं होते हैं और बहुत-से विषयों में भारतीय और पाश्चात्य आचार्य एक मत हो सकते हैं। काव्य का कलानों के साथं अध्ययन करना भारतीय संश्लिष्ट दृष्टि के अनुकूल है । कलाओं के सम्बन्ध में विष्णुधर्मोत्तर, शुक्रनीतिसार, शिल्परत्न. मानसार आदि में बड़ा संश्लिष्ट विवेचन है । डाक्टर श्यामसुन्दरदासजी ने 'साहित्यालोचन' में कलाओं को जो श्रेणीबद्ध किया वह हेगिल ( Hegel ) के विवेचन के आधार पर है । जिस कला में वाह्य सामग्री का प्रयोग जितना कम हो और आत्मा के विशेष भावों की अभिव्यक्ति जितनी अधिक हो उस अंश में वही श्रेष्ठ कला है । इस दृष्टि से सबसे नीचे वास्तुकला है, उसमें सामग्नी का आधिक्य रहता है और भावों की अभिव्यक्ति अपेक्षाकृत कम होती है । इस प्रकार उत्तरोत्तर मूर्तिकला, चित्रकला, सङ्गीत और काव्य में सामग्री कम होती जाती है और भावाभिव्यक्ति का आधिक्य होता है । काव्य में सामग्री (भाषा) और भाव की एकता हो जाती है । चित्रकला में ब्युरा (Detail) और भावाभिव्यक्ति तो अधिक होती है किन्तु उसमें स्थिरता रहती है, सङ्गीत-की-सी तरलता नहीं रहती। सङ्गीत में तरलता है किन्तु वह आकार-मात्र है । उसमें भावों और विचारों की सम्पन्नता नहीं। काव्य मूर्त सामग्री से भी स्वतन्त्र है। तभी कवि की वाणी को 'अनन्यपरतन्त्राम्' कहा है और उसमें सङ्गीत-की-सी तरलता के साथ भावों और विचारों की सम्पन्नता भी है।