पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/८२

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४४ सिद्धान्त और अध्ययन देख लेता है कि जीवन में उसके यश की रक्षा नहीं हो सकती है। होते सभी कार्य आत्मरक्षा के निमित्त ही किन्तु श्रात्मरक्षा का संनुचित अर्थ लेने से वे निंद्य हो जाते हैं। प्रात्मरक्षा जितनी उदार और विस्तृत हो उतनी ही वह श्रेयस् की ओर ले जाने वाली कही जायगी। रक्षा के हो ना भगवान् विष्ण का पद देवताओं में उच्चतम है। .. साहित्य भी हमारी रक्षा के भाव से प्रेरित होकर आत्मानुभूति का एक साधन बनता है । क्या विज्ञान, क्या इतिहास और नया काव्य राब तथाकथित अनात्म में प्रात्मा के दर्शन कर उसकी स्थिति-रक्षा, विस्तार मीर उमति के प्रयास है। विज्ञान और दर्शन द्वारा हम विश्व की व्याख्या अपने मामा के ही एकाकारिता-सम्बन्धी नियमों के आलोक में करते हैं। हमको उन नियमों में आत्मा और अनात्मा की एकध्येयता के दर्शन मिलते हैं। अपने गोग को बढ़ते हुए देखकर किसको प्रसन्नता नहीं होती ? जब हम सारे ब्रह्मााणा और एक रज- कण में, कोरी और कुञ्जर में, पुष्प और पत्थर में एक ही गुरुत्वाकर्षण का नियम काम करते हुए देखते हैं तब हमको कितना मानन्द होता है। तकशास्त्र द्वारा प्रतिपादित प्रकृति की एकाकारिता (Uniforniity of natura) का नियम भी प्रात्मा के विस्तार के कारण होता है । पूर्णत्ता में ही सुख है । 'भूमा पै सुखम्'-शेष सृष्टि के साथ हमारा रागात्मक सम्बन्ध हमको आत्मा की पूर्णता की ओर ले जाता है। काव्य में प्रात्माभिव्यक्ति अपनी प्रात्मा को मूर्तिमान कर अपने को विस्तार देने के कारण पानन्द की उत्पादना होती है। साहित्य द्वारा ‘एकोऽहं बहुस्यामि' के प्रतिरूप हम बहु की एकत्व में पुनरावृत्ति का दृश्य देखते हैं। . साहित्य शब्द भी हमको प्रात्मरक्षा के भाव की ओर अग्रसर करता है। सहित होने के भाव को साहित्य कहते हैं-'सहितस्य भावः साहित्य' । सहित के दो अर्थ हैं-(१) 'हितेन सह सहितं' और (२) एक साथ । हित का अर्थ है बनाने वाला--'दधातीति हितं' । हित में वही 'धा' धातु है जो विधाता में है और शायद इसी कारण विधाता की जाया वीणा-पुस्तक-धारिणी माता शारदा केला और विद्या की अधिष्ठात्री देवी है। वीणा कला का प्रतीकत्व करती है और पुस्तक विद्याओं का । यदि सहित का अर्थ साथ रहना, इकट्ठा करने वाला लें तब भी वही भाव आता है। जो हमारे भावों और विचारों को इकट्ठा रखकर या मानव-जाति में एकसूत्रता उत्पन्न कर, अथवा जो काव्य के शरीर- स्वरूप शब्द और अर्थ को परस्परानुकूलता द्वारा राप्राण बनाकर गानय-जाति का हित सम्पादन करे, वहीं साहित्य है। 10