पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/८६

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सिध्दान्त और अध्ययन
 

यद्यपि यह पाठक का लक्ष्य है तथापि इरागें यह अन्तकरण का सुख भी शामिल है जिससे प्रेरित हो कवि काव्य का निर्माण करता है। कवि भी लागनी सृष्टि का उपभोग करता है । देवी सरस्वती ब्रह्मा की पुत्री और स्त्री भी गानी गई है। यह बात इसी सत्य को प्रकट करने के लिए पाही गई है। कविता गो 'ह्लादेकमयी' कहा गया है । उसकी उत्पत्ति में पालाद है, उत्पन्न होकर मासा को आह्लाद प्रदान करती है और फिर वही आलाद राहृदय पाठक में संभागित हो जाता है और पाठक तथा श्रोता दोनों ही व्यक्तित्व के बन्धनों से मुक्त हो एक ऐसी भाव-भूमि में पहुँच जाते हैं जहाँ उस विषय की तन्मगता में श्रीर किसी वस्तु का भान नहीं रहता और आत्मा के नैसर्गिक श्रानन्द को भालक गिल' जाती है। उस अनुभव में जीवन की सारी कटुताएँ, कर्कशताएँ, विषमताएँ और वेदनाएँ एक अलौकिक साम्य को प्राप्त हो जाती हैं । वहाँ अनेकता में एकता,.भेद में अभेद, व्यक्ति में सामान्य के दर्शन होने लगते हैं। तभी तो लोग कहते ..है कि यदि विश्वशान्ति का कोई साधन है तो साहित्य ।

६. कान्तासंमिततयोपदेशयुजे : काग में उपदेशात्मकता रहने या न रहने के सम्बन्ध में आजकल बहुत वाद-विवाद उठा करते हैं। कोई लोग काव्य को नीति से बिल्कुल अछूता मानते है फिर उपदेश देने की बात पाहाँ रही । मुन्शी प्रेमचन्दजी के ऊपर भी यह श्राक्षेप लिया गया है कि ये उपन्यारा कार का रूप छोड़कर उपदेशक का रूप धारण कर लेते हैं । इस सम्बन्ध में... यह भी कहा जाता है कि उपदेशाक के लिए हम काम को क्या पहे, धर्म-ग्रन्थ क्यों न पढ़ें ? काव्यकार और धर्मोपदेष्टा के दृष्टिकोण में अन्तर है। उसी अन्तर को दिखाने के लिए 'कान्तासंमिततयोपदेशयुजे' कहा है। शासन में 'शब्द तीन प्रकार के बतलाये गये हैं---(१) प्रभुसम्मित, (२) सुहत्सगित, (३) कान्तासम्मित । प्रभुसम्मित शब्द में प्राज्ञा रहती है, वेद के विधि-वाक्य इसी.प्रकार के हैं। सुहृत्सम्मित में प्राज्ञा नहीं रहती है, ऊँच-नीच और इष्टानिष्ट.होने की बात समझाई जाती है । इतिहास-पुराणादि का उपदेश इसी प्रकार का होता है । कान्तासम्मित में स्त्री के प्रेम से मिश्रित उपदेश होता है, उसमें ररा रहता है । काव्य का उपदेश व्यञ्जना-प्रधान होने के कारण सरस होता है।.काव्य का रस कदु' औषधि को निष्ट बना देता है । 'गुजिकिया शिशूनिधी- षधम्'.(काव्यप्रदीप, १।२ कारिका की टीका)----सच्चों को गुड़ मिली हुई औषधियाँ आजकल की शर्करावेष्टित कुनेन की गोलियों (Suyar-coautel