पृष्ठ:सुखशर्वरी.djvu/२३

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उपन्यास । की क्या दशा होगी? पिता के वियोग पर अनाथिनी उस वृद्धा के आश्रय से स्वस्थ हुई थी, उसका अपत्यस्नेह देख कर अपना दुःख भूल गई थी, भाई के खो जाने पर भी बुढ़िया के समझाने से कुछ शान्त हुई थी। किन्तु हा ! अब शान्ति देनेवाली कुटीर भी नहीं है, और आश्वासन देनेवाली बुढ़िया भी नहीं है ! हा! अनाथिनी की क्या दशा होगी? ____ पाठक ! सुरेन्द्र की खोज में वृद्धा गांवों में गई थी, पर भाग्यों से हो वह इस समय यहां नहीं थी; नहीं तो भस्म होजाती। अब बालिका को ढाढ़स कौन दिलावै ? अनाथिनी ने समझा कि, 'किसी दुष्ट ने हमलोगों को भस्म करने के लिये ही इस कुटीर में आग लगाई होगी।' इत्यादि सोच कर रोती रोती वह समीपवर्ती गङ्गा के किनारे जा बैठी । रात्रि का समय था, पूर्णिमा का पूर्ण चन्द्र मन्द मन्द हंसता था, और स्वच्छ चाँदनी में टूटी फूटी सोपानावली दिखाई देती थी। बालिका एक साफ सीढ़ी पर बैठ, दीर्घनिश्वास लेकर कहने लगी,-" सब आस मिटी ! अब क्या ? भाई की चोरी, उसका न मिलना; हा! क्या वह फिर मिलैगा? सो तो नहीं हुआ! दो पहर के समय मेरे हृदय की तरह आकाश मेघाच्छन्न था, पर अब तो रजनीपति के प्रभाव से सघन-घनघटा अन्तर्धान होगई है, पर मेरी हदय की मेघराशि किस आशा से छिन्न. भिन्न होगी ? जब भाई की खोज में गई थी, तब मेरे मन में बड़ा दुःख होरहा था, किन्तु भाशा का मन्द मन्द दीपक बलता था, पर इस समय ? अब तो गाशा का दिया एकाएक बुझ गया, दुःख गाढतम होगया। पूर्णचन्द्र ! तुम्हारे उदय होने से मन पहिले कैसा हर्षित होतो था, किन्तु इस समय तुम्हारी कोमल किरण देखने से जरा भी आनन्द नहीं होता, वरञ्च मर्मभेदी दुःख और शरीर में दाह पैदा होती है । चित्त चाहता है कि अब तुम्हारा मंह न देखें, अंधेरे में दिन विताऊं । हा! उस सुन्दर युवा को क्यों नहीं अंधेरे घर से उद्धार किया ? अहा ! कैसी मनोहर मूर्ति थी ? पर शरीर दुर्बल और अंग श्रीहीन होगया था। हाय ! लौटने के समय उस जर्जर अश्व ही को क्यों नहीं बंधन से छुड़ाया ? मैं संसार में जन्म ले कर किसीका भी उपकार न कर सको। हाय ! Rom