पृष्ठ:सुखशर्वरी.djvu/४९

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उपन्यास। - whivvvvvvvvvvvvvu" में बलि होगया, अब इस पापमय पृथ्वी में नहीं है!' हा! तब मैं कहां जाऊंगी! यदि कभी सरला से भेंट हो तो उमसे मैं क्या कहूँगो ? जो कहीं हरिहरबाबू के संग मेरा साक्षात् हो तो उन्हें मैं पया जवाब देंगी? उदासीन को सोने ! भग्नगृह पास ही तो है, पहिले वहीं चलं। बंदो के भाग में वा मेरे कर्म में क्या बदा है, इसे देख : व्यर्थ किसीकी नींद क्यों खोलं?". . इसी तरह सोचते सोचते उदासीन को बिना जगाए ही अनाथिनी जल्दी से अग्रसर हुई, और भग्नगृह के समीप पहुंची। घर के भीतर जाकर उसने देखा कि, 'सब घर सूनसान पड़ा है ! जिसमें बंदी था, वह भी खुला झनझना रहा है, और कापालिक का भी कुछ पता नहीं है !' बंदी को न देख कर अनाथिनी पागल की तरह होगई ! वह सोचने लगी कि, 'हा! बंदी कहां गया और कापालिक किधर गया ?' इत्यादि सोच विचार करती करती वह जोर से चिल्ला कर पुकारने लगी,-" बंदी कहां है ? बंदी कहां है ? " पर किसीने कुछ उत्तर म दिया, केवल टूटे खंडहर ने प्रतिध्वनि से उत्तर दिया ! भग्नगृह कुछ अँधेरा था, इसलिये अनाथिनी को ऐसा जान पड़ा कि, 'मानों एक कोने में बंदो बँधा खड़ा है ! मानो कारागारा ही में से मुझसे बातें कर रहा है ! मानों अपनी हथकड़ी-बेंडी दिखाकर उसे तोड़ देने का अनुरोध कर रहा है !' अनाथिनी जो उस कल्पनाकृत बंदी के पास गई तो कहीं कुछ नहीं दिखाई दिया !!! वह उसकी केवल कल्पनामात्र रही। तब वह उन्मत्त की तरह बकती-झकती, टूटे-फूटे मन को बटोर कर भग्मगृह से बाहर हुई, और उसी वृक्ष के नीचे आई, जहां उदासीन सोता था; किन्तु हा! अब वह उदासीन कहां चला गया! अनाथिनी के मन में बड़ा दुःख हुआ कि, 'यहीं उदासीन को जगा कर क्यों न सब हाल पूछ लिया ? और सरला का समाचार सुना कर क्यों न उसकी उदासीनता दूर की ?' इस समय बंदी का विषय भूलकर वह उदासीन की खोज में इधरउधर भटकने लगी ! किन्तु फिर उसने सोचा कि, 'शायद उदासीन पांथनिवास में जाकर सरला से मिल गया हो!' यह सोच-समझ कर पांथनिवास की ओर वह चली । थोड़ी देर में यहां पहुंच कर वह बहुत घबरा गई, क्योंकि किसाने उस पाप HELLERS