पृष्ठ:सुखशर्वरी.djvu/६५

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__ श्रीः चन्द्रावली वा कुलटाकुतूहल । जासूसी उपन्यास। मूल्य दो आने । यह उपन्यास भी तीसरी बार छपा है और बहुत ही उत्तम, रोचक और शिक्षाप्रद है। घनश्यामदास की लड़की चम्पा और उनकी रंडी चुन्नी की लड़की चन्द्रावलो की सूरसशकल का एक ही ला होना, इसलिये चम्पा को मार और खुद चम्पा बनकर चन्द्रावली का चम्पा की सारी सम्पत्ति पर दखल जमाना और सर्व साधारण में यह मशहूर होना कि, 'बनारस की दाल की मंडावाली मशहूर रंडी चन्द्रावलो मारी गई !' इस बात की जांच के लिए गवर्नमेण्ट का कलकत्ते से एक मशहूर जासूस यदुनाथ मुकुर्जी को बनारस भेजना और उक्त जासूस महाशय का इस खून की छानबीन कर चम्सा बनी हुई खूनी रण्डी चन्द्रावली और उसके यार ऐंठासिंह का चम्पा के मकान में से गिरफ्तार करके। फांसी दिलवाना तथा चम्पा के दत्तकपुत्र कृष्णप्रसाद के प्राण और सम्पत्ति की रक्षा करना बड़ी खूशी के साथ वर्णन कियो गया है । चम्पा की बड़ी बहिन ललिता थी, ललिता का पति चन्द्रिकाप्रसाद था और चन्द्रिकाप्रसाद का पुत्र कृष्णप्रसाद था, इसीको चम्पा ने दत्तकपुत्र बनाया था। छोटा होने पर भी यह जासूसी उपन्यास बड़े बड़े जासूली उपन्यासों का मुकाबिला करता है। इसे एक बार अवश्य पढ़िए । उपन्यास बहुत ही उत्तम है। मिलने का पता,-मैनेजर श्रीसुदर्शनप्रेस, वृन्दावन ( मथुरा)