पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२०२

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दशमस्कन्ध-१० । (१०९) निकट बुलाऊं । आगम निगम नेति करि गायो शिवउ नमान नपायो।सूरदास बालक रस लीला मन अभिलाप बढ़ायो॥६६॥ अथ सतम अध्यात्री नाव वध गोडा तोरन॥राग विलावल । यशुमति मन अभिलाप करै । कब मेरोलाल घुटुरुवन रेंग कब धरनी पग द्वैक धरै । कबद्ध दंत दूधके देखों कब तुतरे मुख वैनझरैकब नंदहि कहि बावा वोले कव जननी कहि मोहि रौकर मेरो अचरागहि मोहन जोइ सोइ कहि मोसोझगरैकवधौं तनक तनक कछु खैहै अपने कर सोमुखहि भरी।कवहाँस बात कहेंगे मोहिसों छवि पेपत दुख दूरि करै । श्याम अकेले आगन छाडे आपु गई कछु काज घरै। एहि अंतर अंधवाइउठी इक गरजतगगन सहित बहरै ॥ सूरदास व्रज लोग सुनत ध्वनि जो जहां तहां सब अतिहि डरै ॥६७ ॥ राग सूही ॥ अति विपरीत तृणावर्त आयो । वात वक्र मिस ब्रजके ऊपरि नंद पँवरिके भीतर आयो।पौठेश्याम अकेले आंगन लेत उठ्यौ आकास चढायो अंधधुंध भयो सब गोकुलजो जहाँरझो सो तहाछपायो । यशुमति आइ धाइ जोदेखै श्याम श्याम करि सोर उठायो । धावहु नंद गोहारी लागौ किनि तेरो सुत अधवाइ उठायो । इहि अंतर आका सते आवत्त पर्वतसम कहि सपनि बतायो । मारयो असुर शिलासों पटक्यो आप चढे ताऊपर भायो॥ दौरे नंद यशोदा दौरी तुरतहि लै हितकंठ लगायो।सूरदास यह कहत यशोदा ना जानौं विधिनहिं कह भायो।।६८॥राग बिलावलासोभित सुभग नंद जूकोरानी अति आनंद आंगनमें टाटी | गोदलिये सुत सारंगपानीतृणावर्तकी सुरति आनि जिय पठयो असुर कंस अभिमानी।गरूभये महिमें वैठाए सहिन परै जननी अकुलानी॥आपुन गई सदनहीं दौरी काहू एक काज लपटानी। वोडरुमहा भयावन आयो गोकुस सबै प्रलयकै जानी ॥ महादुष्ट लै उड्यो गोपालहि चल्यो अकास कृष्ण यहठानी । चापि ग्रीव हरि प्राणहरे ग करत प्रवाह चल्यो अधिकानी॥पाहन शिला निरखिहरि डारयो ऊपर खेलत श्यामविनानी । देति अभूपण वारि वारि सव सूरज पियत वारि सब पानी ६९ ॥ रागधनाश्री ॥उपरयोश्याम महरि बड़भागी।बहुतदूरिते आइ परयो धर देख? मैं कहुँचोट न लागी ॥ रोगले बलिजाउँ कन्हैया यह कहि कंठलगाइ ॥ तुमहीहौ बजके जीवन धन देखत नैन सिराइ । भली नहीं तेरी प्रकृति यशोदा छोड़ि अकेलो जाति ॥ गृहको काज इनहूते प्यारो नेकहु नहीं डेराति । भली भई अवकै हरि वाच्यो अवहू सुरति सम्हारि। सूरदास खिझि कहति ग्वालिनी मनमें महरि विचारि ॥७०॥ रागबिलावल ॥ अव हौं श्याम बलिजाउँ हरी । निशि दिन रहति विलोकति हरिमुख छोड़ि सकति नहिं एकवरी।हौं अपने गोपाल लडैहौंभौन चाउ सब रहौं धरी पाए कहा खेलावनको सुख मैं दुखिया दुखकोटिभरी ॥ जासुखको शिव गौरि मनाई त्रिय व्रत नेम करी । सूरश्याम पाए पैडेमे मैनिधि रांक परी॥ ७१॥ राग धनाश्री ॥ हरि किलकत यशु दाकी कनियां । निरखि निरखि मुख हँसति श्यामसों मो निधनीके धनियाअति कोमल तनु श्यामको वार वार पछिताताकैिसे वच्यो जाउँ वलि तेरी तृणावर्तके घातानाजानो धौं कौन पुण्यते को करिलेत सहाइ ॥ वैसो काम पूतना कीनो इहि ऐसो करि आइ । माता दुखित जानि हरि विहसे नान्ही दैतुली दिखाइ। सूरदास प्रभु माता चितते दुखडारयो विसराइ ॥७२॥ सुत मुख देखि यशोदा फूली। हर्पित देखि दूधकी द॑तिया प्रेममगन तनुकी सुधि भूली । वाहिरते तव नंद बुलाए देखोधौं सुंदर सुखदाइ । तनक तनकसीदूधकी दंतिया देखौ नैन सुफल करौ आइ || आनंद सहित महर तवं आए मुख चितवत दोउ नैन अघाइ । सूरश्याम किलकत द्विज देख्यो मानो कमल परवीज जमाइ ॥ ७३ ॥ रागनीश्रीहठी ॥ जननी