पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२०४

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दशमस्कन्ध-. किलकि वैन कहत मोहन मृदु रसना ॥ नासिका लोचन विसाल संतत सुखकारी । सूरदास धन्य भाग्य देखत ब्रजनारी ॥ ७८॥ लालन तेरे मुखपरहो वारी । वालगोपाल लगौ इन नैननि रोगु वलाइ तुम्हारी ॥ लट लटकनि मोहन मिस बिंदुका तिलकभाल सुखकारी। मनहुँ कमल अलि सावक पंगति उडत मधुप छवि भारी।लोचन ललित कपोलनि काजर छवि उपजत अधिकारी। मुखमें सुख औरै रुचिवादति हँसत दँदै किलकारी॥ अल्प दशन कलवल करि वोलीन विधि नहिं परत विचारी । निकसति ज्योति अधरनिके विचढ़ मानौ विधुमे वीजु उज्यारी। सुंदरताको पार नपावतिं रूपदेखि महतारी। सूरसिंधुकी वूद भई मिलि मति गति दृष्टिहमारी ॥७९॥राग धनाश्री॥ लाल तेरे मुख ऊपर वारी । वलि कैसे मेरे नैननि लागै लेउँ वलाइ तिहारी ॥ सुंदरताको पारन आवति रूप देखि महतारी। उरअंतर आनंद वढ़ावत हँसत देत किलकारी॥ अल्पदशन तोत- रावत वोलत छवि चितहुन जात विचारी । सूर सिंधुकी बूंदभई मिलि मनसा मगन हमारी ॥ ८० ॥ राग नैतश्री ॥ लानन हौंवारी तेरे या मुख ऊपर । माई मेरिहि डीठि न लागै तातेमसि विदा दयो भूपर ॥ सर्वसुमैं पहिलेही दोनों नान्हीं नान्हीं दतुली दूपर । अवकह करौं निछावरि सूर यशोमति अपने लालन ऊपर ॥ ८ ॥ लालाही वारी तेरे मुखपर । कुटिल अलक मोहन मन विहँसत भ्रुकुटी विकट नैननिपर ॥ दमकति द्वैदै दंतुलिया विहँसति मानौ सीपिज घरु कियो वारिजपर ॥ लघु लघु शिरलट बूंघरवारी लटकिररहयो लिलार परशयह उपमा कहि कांप आवै कछुक कहाँ सकुचतिहौं हियपणनूतनचंद्र रेखमधि राजति सुरगुरु शुक्र उदोत परस्पर ॥ लोचन लोल कपोल ललितअति नासिकको मुक्तारद छंदपर । सूरकहा न्यौछावरि करिये अपने लाल ललित लर ऊपर ॥ ८२ ॥अथवरसगांटि- लीला ॥ राग विलावळ ॥ आज भोर तमचरकी रोल ॥ गोकुलमें आनंद होतहै मंगल ध्वनि महराने ढोल । फूले फिरत नंद अति सुख भयो हार्प मँगावत फूल तमोल ॥ फूली फिरत यशोदा घर घर उवटि कान्ह अन्हवाइ अमोल । तनक वदन दोउ तनक कर तनक चरन पूंछत पट झोल ॥ कान्हगले सोहै कंठमाला अंग अभूपण अंगुरिनगोल । शिरचौतनी दिगैना दीने आंखिआंजि पहिराइनिचोल॥ श्याम करत मातासों झगरो अटपटात कलवल करवोल । दोउ कपोल गहिक मुख चुंवति वर्षदिवस कहि करत कलोल । सूरझ्याम ब्रज जन मन मोहन वरपगांठिको. डोरा खोल ॥ ८३ ॥राग धनाश्री ॥ अलि मेरे लालनकी आजु वरपाठिसव सवनि वोलावो । शुभकरि मंगल गान करावो। चंदन आंगन सवनलिपावो । मोतिअनको तुम चौक पुरावो ॥ उमंग अंगनि आनंद तूर वजावो । मेरे कहे तुम विप्र बुलावो ॥ शुभघरि एक आनि धरावौ ॥ वागे वीरे पनि नि वनायो ।आभूपण पहिरावो । अक्षत दूव वधावोलालनकी वर्षगांठि जुरायो। इहै मोहि नैनन लाहो देखावो ॥ पंचरंगसारी मंगावो । बंधुजन सव पहिरावो । नासव उमंगि अंग बढ़ावो । नंद रानी सव ग्वाल वुलावो ॥ इहैरीति कहिं कहि सुनावो । वेगि करौ किनि विलंव लगावो ॥ यशुमति तव नंद वोलावो। लाल लिए कनियां देखरावो । लग्नकी धरीतुरत अव आवो । मैतो अन्ह वाय वनावो ॥ अति सुख भयो वर गांठि जुरावो । सूरझ्याम मुख छविहि निहारति । तनमन धन युवती जन वारति ॥ ८४ ॥ राँग आसावरी ॥ उमॅगनि उमॅगीहै ब्रजनारी कान्हकी वरषगांठि वरप वरपनि। गावहिं मंगलगान नीके सुर नीकांतान आनंद हरपनि । कंचनमणि जटितथार दधिरोचन फूल डार देखन चली नंदकुमारमिलिवकी तसनि। सूरदास प्रभुकी वरपगाठि जोरति यह छविपर