पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२४८

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दशमस्कन्ध-१० (१५५) जाने जाते आप वधावतासूरश्याम स्वपने नहिं दरशत मुनिजनध्यान लगायत ॥ ६ ॥ ब्रजवासी पटतर कोट नाहिं । ब्रह्म सनक शिव ध्यान न पावत इनकी जूठानललेखाहिधिन्यनंद धनि जननि । यशोदा धन्य जहां अवतार कन्हाई। धन्य धन्य वृंदावनके तरु जहां विहर तत्रिभुवनके राई ।। हलधर कह्यो छाक जेवत संग मीठो लगत सराहत जाइ । सूरदास प्रभु विश्वभर है ते ग्वालनके कौर अघाइ॥६॥ सारंग ।। शीतल छहियां श्याम बैठे जानि भोजनकी वरिआ । वाम भुजा सखा अंश पर दीने लीने दक्षिण कर दुमडरिमा । चलिये जुनैकगाइनिवेरी जुवलरामसों कहत वोलि | लेहु आपने वोरिआ । सूरदास प्रभु बैठे कदम तर गइयाको दूध निकरिया ॥ ७॥ नट नारायण ॥ विधि मनहीमन सोचपरयो।गोकुल कीरचना सब देखत अति जिय माहडरयो। मैं विरंचि विरच्यो। जग मेरो यह कहि गर्व वढायो।बज नर नारि ग्वाल बालक कहि कोने ठाठ रचायो । वृंदावन वट संघन वृक्ष तर मोहन सबै वोलाये । सखा संग मिलि कार भोजी विधि विधि मन भरम उपाये ॥ धेनु रही वन भूलि द्वै वालक भ्रम तन पाये । याते श्याम अतिहि अतुराने तुरत तहां उठि धाए वालक वच्छ हरे चतुरानन ब्रह्मलोक पहुँचाये ॥ सूरदास प्रभु गर्व विनाशन नव कृत फेरि बनाये ॥८सारंगवित छाक गाइ विसराई।सखा श्रीदामा कहत सबनिसों छाकहि में तुमरहे भुलाई धिनु नहीं देखियत कहूं नियरे भोजन हीमें सांझ लगाई।सुरभीकाज जहां तहां उठिधाये आप तहांउठि चले कन्हाई ॥ ल्याये ग्वाल घेरि गो गो सुत देखि श्याम मनहरपवढाई।सूरदास प्रभु कहत चलौ । घर वनमें आजु अवार कराई ॥९॥ गौरी ॥वजहि चली आई अव सांझ । सुरभी सबै लेह आगे | करि रैनि होइपुनि वनही मांझ । भली कही यह बात कन्हाई अतिहि सघन आरण्य जारि ॥ गैयां हांकि चलाई ब्रजको और ग्वालसव लिए पुकारि॥ निकसिगएवन ते सब वाहिर अति आनंद भए सब ग्वाल ॥ सूरदास प्रभु मुरली बजावत बजआवत नटवर गोपाल |॥१०॥ कल्याण | सुंदर श्याम सुंदर वर लीला सुंदर वोलत वचन रसालासुंदर चारु कपोल विराजत सुंदर उरजवनी वनमाल । सुंदर चरण सुंदर है नख मनि सुंदर है कुंडल मकराल । सुंदर मोहन नैन चपल किए सुंदर ग्रीवा बाहु विसाल ॥ सुंदर मुरली मधुर वजावत सुंदर हैं मोहन गोपाल । सूरदास जोरी अति राजति ब्रजको आवत सुंदर चाल ॥ ११ ॥ सुंदर श्याम सखा सब सुंदर सुंदर भेप धरे गोपाल । सुंदर पथ सुंदर गत आवनि सुंदर मुरली शब्द रसाल ॥ सुंदर लोग सकल व्रज सुंदर सुंदर हलधर सुंदर चाल । सुंदर वदन विलोकनि सुंदर सुंदर गुण सुंदर वनमाल । सुंदर गोप गाइ अतिसुंदर सुंदर गुण सब करत विचार । सूरश्याम संग सव सुख सुंदर सुंदर भक्तहेत अवतार ॥ विलावल ।। सुंदर ढोटा कौनको सुंदर मुदुवानी ॥ कहि समुझायो ग्वालिनी जायो नँदरानी । सुन्दरता मूरति देखके घन घटा लजानी।सुंदर नैन निहार लियो कमल नको पानी ।। सुन्दर तिहुँलोककी ब्रजपुरमें आनी। सूरदास यशुमति भई सुंदरता रजधानी ॥ ॥ १२ ॥ गौरी ॥ देखि सखी बनते जुवने व्रज आवतहैं नंदनंदन ॥ शिखंडी शीश मुख मुरली बजावत बन्यो तिलक उर चंदन । कुटिल अलक मुख चंचल लोचन निरखत अतिं आनंदन ॥ कमल मध्य मानौ द्वै खग खंजन वधे आइ यहि फंदन । अरुण अधर छवि दशन विराजति जब | गावत कलमंदन । मुक्ता मनों लालमणिमें पुट धरे मुरकि वरवंदन । गोप भेप गोकुल गोचारत हैं प्रभु असुर निकंदन। सूरदास प्रभु सुयशवखानत नेति नेति श्रुति छंदन॥१३॥मेरे नैन निरखि सुख पावत । संध्या समै गोप गोधन संग वनते बनेलाल ब्रज आवत ॥ बलि बलि जाउँ मुखार्विदकी मंद ।