पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२५३

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(१६०) सूरसागर। || मदन मोहनको ध्यान धरै जो अति सुखपावत चैनु । चलत कहा मन वसत पुरातन जहा ! लैन नहीं देनु ।। इहां रहौ जहां जूठनिपावै ब्रजवासीके जैनु। सूरदासह्वांकी सरवरि नहिं कल्प वृक्ष सुरधेनु ॥४१॥ गौरी । अघामारि आए नंदलाल ॥ व्रज युवती सुनिक उठि धाई घर पर कहत फिरत सब ग्वाल ॥ निरखत वदन चकित भई सुंदरि मनही मन इह करि अनुमान । कहति पर स्पर सत्यवात यह कौन करे इनकी सर आन । एई हरतिपतिके मोहन एई हैं हमरे पति प्रान ॥ सूरश्याम जननी मन मोहत वार वार मागत कछुखान ॥४२॥माँगि लेहु जो भावै प्यारे। बहुत भांति मेवा सब मेरे षटरसके परकारहै न्यारे॥ सबै जोरि राखति हित तुम्हरे मैंजानतितुववानि । तुरतमथोमाखन दधि आछो खाहु देइ सो आनि ॥ माखन दधि मोहि लागत प्यारो औरन भाव मोहि । सूरजननि माखन दधि दोनो खात हँसतु मुख जोहि॥४३॥चकई भौंराखेल नसमै बिलावल।। दे मैया भँवरा चकडोरी । जाइलेहु आरेपर राखो काल्हि मोलले राखै कोरी ॥लैआये हँसि श्याम तुरतही देखिरहे रंगरंग बहु डोरी । मैया विन और को राखै वार वार हरि करत निहोरी । बोलि लिए सब सखा संगके खेलत श्याम नंदकी पौरीतिसेइहरितैसई सव बालककर भवरा चकरीनिकी जोरी ॥ देखति जननि यशोदा यह छवि विहँसत वार वार मुख मोरी । सूरदास प्रभु हँसि हसि खेलत ब्रजवनिता तृण डारत तोरी ॥४४॥ कान्हरो ॥ मेरे हियरे मांझ लागै मनमोहन लैगयो मन चोरी । अवहीं इहि मारगढ निकसे छवि निरखत तृण तोरी । मोर मुकुट श्रवणन मणि कुंडल उर बनमाला पीत पिछोरी । दशन चमक अधरन अरुणाई देखत परी ठगोरी ॥ ब्रज लरिकन सँग खेलत डोलत हाथ लिए फेरत चकडोरी। सूरश्यान चितवत गए मोतन तन मन लिएअजोरी॥४६॥टोडीतवते मोरो जिव न रहि सकताजित देखों तितही वह मूरति नैननिमें नित लग्योई रहत ॥ ग्वाल वाल सब संग लगाए खेलतमें करि भाव चलत । उरझि परयो मेरो मनु तबते कर झटकत चकडोरी हलत ॥ अब मैं कहा करौं मेरी सजनी सुरति होत तब मदन दहत । सूरश्याम मेरो चित हरिलीन्हौं सकुच छांडि अव तोहि सों कहत॥४६॥ श्रीराधाकृष्णजीका प्रथम मि लाप ॥ राग टोडी ॥ खेलन हरि निकसे ब्रज खोरी। कटि कछनी पीतांवर ओडे हाथ लिए भौंरा चकडोरी । मोर मुकुट कुंडल श्रवणन वर दशन दमक दामिनि छवि थोरी। गए श्याम रवि तनयाके तट अंगलसति चंदनकी खोरी ॥ औचकही देखी तहां राधा नयन विशाल भाल दिए रोरी। नील बसन फरिया कटि पहिरे वेनी पीठि रुचिर झकझोरी ॥ संग लरिकिनी चली इत आवति दिन थोरी अति छवि जन गोरी । सूरश्याम देखतही रीझे नैन नैन मिलि परी ठगोरी ॥४७॥ राग टोडी ॥ बूझत श्याम कौन तू गोरी। कहां रहति काकीहै बेटी देखी नहीं कहूं बन खोरी।काहेको हम बजतन आवति खेलति रहति आपनी पौरी । सुनति रहति श्रवणाने नँद ढोटा करत रहत माखन दधि चोरी॥तुम्हरो कहा चोरि हम हैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी।सूरदास प्रभु रसिक शिरोमणि बातन सुरइ राधिका भोरी ॥४८॥ धनाश्री ॥ प्रथम सनेह दुहुँन मन जान्यो । सयन सयन कीनी सब बातें गुप्त प्रीति शिशुता प्रगटान्यो ॥ खेलन कवडे हमारे आवहु नंद सदन बज गांव । द्वारे आइ टेरि मोहिं लीजो कान्हहै मेरो नाउँ ॥ जो कहिये घर दुरि तुम्हारे बोलत सुनिये टेर। तुमहि सौंह वृषभानु वबाकी प्रात सांझएक फेर॥ सूधी निपट देखियत तुमकौं ताते करियत साथ । सूरश्याम नागर उत नागीर राधा दोउ मिाल गाथ ॥४९॥ रागनट | सैननिलई नागरि समुझाई। सरिक आवद्ध दोहनीले यहै मिस छल पाइ॥गाइ ।