पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२५९

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सूरसागर। । हौं ॥९०॥चले सब गाइ चरावन ग्वाल । हेरी टेर सुनत लरिकनकी दौरि गए नंदलाल ॥ फिरि इत उत है देखे यशुमति दृष्टि न परे कन्हाइ । जान्यो जात ग्वाल सँग दौरयो टेरति । यशुमति धाइ ॥ जात चल्यो गैपनके पाछे बलदाऊ कहि टेरत । पाछे आवत जननी देखी फिरि फिरि इतको हेरत ॥ बल देख्यो मोहनको आवत सखा किए सब ठाढ़े । पहुँची आइ यशोदा रिससों दोउ भुज पकरे गाढे । हलधर कहो जानदे मो संग आवहि आज सवारे । सूरदास लसों कहै यशमति देखे रहियो प्यारे ।। ९१॥ विलावल ॥ खेलत श्याम चले ग्वालनसँग । यशमति कहति इहै घर आई देखौ हरि कीने जजेरंग ॥ प्रातहिते लागे एही ढंग अपनी टेक परयोहै । देखौं जाइ आजु बनको सुख कहा परोसि धरयोहै ॥ माखन रोटी अरु शीतल जल यशुमति दियो । पठाइ । सूर नंद हँसि कहत महरिसों आवत कान्ह चराइ ।। ९२ ॥ सारंग ॥ हरि जूको ग्वालिनि । भोजन ल्याई । वृंदा विपिन विशद यमुना तट शुचि ज्योनार बनाई।सानि सानि दधि भातुलियो कर सुहृद सबनि करदेत । मध्य गुपाल मंडली मोहन छाक वांटिक लेत ॥ देवलोक देखत सर । कौतुक वाल केलि अनुरागी । गावत सुनत सुनत सुख करि मनौ सूर दुरित दुख भागी॥९३॥ अथ धेनुकवध । राग भैरव ॥ सखा कहन लागे हरिसों तव । चलौ तालवनको जैये अव । ता बनमें फल बहुत सुहाए। वैसे हम कवहूं नहिं खाए॥असुर धेनुक तहाँहैं रखवारी । चलौ कहैं हँसि बलि बनवारी ॥ विहसत हरि सँग चले गुआला । नाचत गावत गुण गोपाला ॥ सोयो हुतो असुर तरु छाया। सुनत शोर तरुते उठि धाया ॥ हलधरको देखे तिन आवत । येदोउ बलकर जोर चला । वतपकीर पांह बलभद्र फिरायो । मारि ताहि तह माहि गिरायो। और बहुत ताको परिवारो।। हरि हलधर तिन सबको मारो ॥ ग्वालन वनफल रुचि खों खाए। बहुरौ श्रृंदावनहि सिधाए॥ हरि हलधरछवि वरणि न जाई। सूरदास इह लीला गाई॥९४॥ गोरा ।। वनत आवत धेनु चराये। संध्या । समय सांवरे मुखपर गोपद रज लपटाये।वरह मुकुट के निकट लसति लट मधुप वने रुचि पाये॥ विलसत सुधा जलद आनन पर उड़त न जात उड़ाये ॥ विधि वाहन भानकी माला राजत उर. पहिराये । इक वपु रही नाहिं बड़े छोटे टोटा शिशु ग्वाल वने इक दाये ॥ सूरदास मिलि लीला प्रभुकी जीवत जन यश गाए ॥ ९५ ॥ आजु हरि धेनु चराये आवत । मोर मुकुट वनमाल विराजत पीतांवर फहरात ॥ जिहि जिहि भांति ग्वाल सब बोलत सुनि श्रवणन मन राखत । आपुन टेरिलेत नान्हे सुर हरपत सुख पुनि आषत ॥ देखत नंद यशोदा रोहिणि अरु देखत ब्रज लोग । सुरश्याम गाइन सँग आये मैया लीनो रोग ॥ ९६॥ यशुमति दौरि लए हरि कनियां । आजु गयो मेरो गाइचरावन हौं बलिगई निछनिया॥मो कारण कछ आन्योहै वलि बनफल तोरि कन्हैया। तुमहिं मिले मैं अति सुख पायो मेरे कुँवर कन्हैया ॥ कछुक खाहु जो भावै मोहन देरी माखन रोटी। सूरदास प्रभु जीवहु युग युग हरि हलधरकी जोटी॥ ९७॥ सारंग ॥ मैं अपना सब गाइ चरैहौं । प्रात होत बलके सँग जैहौं तेरे कहे न भुरैहौं । ग्वाल बाल लै गाइन भीतर नेकह नहिं डर लागत। आजुन सोवों नंद दुहाई रैनि रहोंगो जागत ॥ और ग्वाल सब गाइ चरैहै मैं घर वैठो रैहौं। सूरश्याम अब सोइ रहो तुम प्रात जानमैं देहौं ॥ ९८॥ केदारो ॥ बहुतै दुख हरि सोइ गयोरी। सांझहिते लाग्यो यहि वातहि क्रम क्रमते मन बोधि लयोरी ॥ एक दिवस गयो गाइ चरावन ग्वालन साथ सवार। अवतौ सोइ रह्योहै कहिकै प्रातहि कहा विचारै॥ रहतौ सब बलरामहि । लागै सँग लैगयो लिवाइ। सूर नंद यह कहत महरिसों आवन देफिरि धाइ ॥१९॥ विलावल ॥ करहु ।।