पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२६९

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(१७६) सुरसागर। दधि अहिरनकांधे जोरी ॥ बहुत विनती मेरी कहियो और धरे जलजामल तोरी । नृपके हाथ पत्र यह दीजो श्याम कमल लै आयो । कोटिकमल आपुन नृप मागे तीनि कोटिहै पायो। नृपति हमाहि अपनो करि जाने तुम लायक हम नाही । सूरदास कहियो नृप आगे तुमहि छोडि कहां जाहीं॥८६॥ गंड ॥ कमलके भार दधिभार माखनभार लिये सवग्वार नृपद्वार आए । तुरतही दारि गनिकरि शकटनिजोरि भये ठाढे पौरि तव सुनाए । सुनत यह बात अतुरात औ डरात महलते निकसि नृप आपु आए । देखि दरबार सब ग्वार नहिं कहूंपार कमलके भार शकटनि सजाए। अतिही चकृत भयो ज्ञान हरि हरि लयो सोच मनमें ठयो कहा कीन्हो । गोप शिरमोर नृप वोर करजोरिकै पुहुपके काज प्रभु पत्र दीन्हो ॥ यह कह्यो नंद नृप वृंद अहि इंद्रपै गयो मेरो नंदन तुव नाम लीन्हों। उठ्यो अकुलाइ डरपाइ तुरतहि धाइ गयो पहुँचाइ तट आइ दीन्हो ॥ यह कह्यो श्याम बलराम लीजो नाम राजको काम यह हमहि कीन्हो । और सब गोप आवत जात नृप वात कहत सब सूर मोहिं नहीं चीन्हों।॥८॥बिलावल ॥ ग्वालन हरिकी बात चलाई । यह सुनि कंस गयो अकुलाई । तव मनही मन करत विचार । यह कोउ भलो नहीं अवतार ॥ यासों मेरो नहीं उवार । मोहिं मारत मारै परिवार ॥ दैत्यगएते बहुरि न आयो । कालीते ए क्यों वचिआए । ताही पर धरि कमल लदाए । सहस शकट भरि व्याल पठाए ॥ एक व्याल मैं उनहि बताए । कोटि व्याल मम सदन चलाए ॥ ग्वालन देखि मनहि रिस कापै । पुनि मनमें यह अटकर नापै ॥ आपहि आप नृपहि तनु त्याग्यो । सूरदेखि कमलन उठि भाग्यो ॥८८॥ नटराग ॥ भीतर लए गोप बुलाइ । हृदय दुख मुख हलभली करि ब्रजहि दिए पठाइ॥ नंदको शिरोपाव दीन्हो गोप सब पहिराइ। यह कह्यो वलराम श्यामहि देखिहीं दोउ भाइ॥ अतिहि पुरुषारथ करे उन कमल उनहि ल्याइ ॥ सूरप्रभु को देखिहाँ मैं एक दिवस वुलाइ ॥८९ ॥ कमल शकटनि भरे व्याल मानो । श्यामके वचन सुनि मनहि मन रह्यो गुनि काठ ज्यों गयो घुनि तन भुलानो ॥ भयो वेहाल नंदलालके रव्याल यह उरगते वांचि फिरि ब्रजहि आयो।कह्यो दावानलहि देखों तेरे वलहि भस्मकरि ब्रजप्रलहि में कहि पठायोगचल्यो रिसपाइ अतुराइ तव धाइके ब्रजलोग वनसहित मैं जारि आऊं। नृपतिके लेपान मन कियो अभिमान करत अनुमान चहुँपास धाऊं ॥ वृंदावन आदि ब्रजआदि गोकुल आदि आदि वुन्यादि सव अहिर जारौं । चल्योमगजात कहि वात इतरात अति सुरप्रभु सहित संहारि डारौं॥९०॥राग गुंड मलार कमल पहुँचाइ सब गोप आए। गए यमुनातीर भई अतिहीभीर देखि नंदतीर तुरतही बोलाए ॥ दियो शिरपा नृपराउने महरकों आप पहरावनी सब दिखाए। अतिहि सुखपाइकै लियो शिरनायकै हरष नंदराइकै मन बढाए ॥ श्याम बलरामको नाम जब हम लियो सुनत सुखकियो उन कमल ल्याए । सूर नंदसुवन दोऊ एक दिवस देखिहौं पुहुप लिए सुख पाए इनि बोलाए ॥९१ ॥ धनाश्री ॥ यह सुनि नंद बहुत सुख पाये।कमल पठाइ दये नृपलीन्हे देखनको दुहुँ सुतन वुलायोसेिवा बहुत मानि है लीन्हीं वजनारिन मन हरष बढाये। बड़ीवात भई कमल पठाए आनहु आपुन जलते ल्याये ॥ आनंद करत यमुना तट व्रजजन खेलत खातहि दिवस विहाए । एक सुख श्याम वचे कालीते यकसुख कंसहि कमल चलाए ॥ हसत कान्ह बलराम सुनत यह हमको देखन नृपति मँगाए । सूरदास प्रभु मात पिता हित कमलकोटिदै ब्रजहि वचाए ॥ ९२ ॥ अथ कालीलीला दूसरी । राग धनाश्री ॥ नारद कही समुझाइ कंस नृपराजको । तव पठयो ब्रज दूत पुहुप येक काजको ॥ १ ॥ तव पठयो ब्रजदूत