पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२९६

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- दशमस्कन्ध-१० (२०३.) तुम श्याम अचगरी। काहूकी छीनतही गेंडुरी काहूकी फोरतहो गगरी ॥ भरनदेहु'यमुना जल हमको दूरिकरौ वांतें एलंगरी । पैंडे चलन नपावै कोऊ रोकि रहत-लरकनलै डगरीघाट वाट सब देखत आवत युवती डरन मरतिहै सिगरी।सूरश्याम तेहि गारी दीनो जो कोउ आवै तुमरी वगरी।। रामकली। नाके देहु न मेरी गिंडरी । लैजही धरि यशुमति आगे आवहरी सब मिलि एक झुंडरी।। काहू नहीं डरात कन्हाई वाट घाट तुम करत अचगरी । यमुना दह गेंडुरी फटकारी फोरी सव शिरकी अस गगरी ॥ भली करी यह कुँवर कन्हाई आजु मेटिही तुम्हरी लँगरी । चली सूर यशुमतिके आगे उरहनलै तरुनी व्रजसगरी ॥८॥ आनि नदेहु टोटोना ढीठ गेडुरी पराई। तेरे कोऊ कहा करेंगौ धौ लरिहै हमसों भौजाई ।। मेरे संगकी और गई ते जल भार भरि घरते फिर आई । सूरश्याम गेंडुरी दीजै नतौ यशुमति सों कैहौं जाई ॥ ८२ ॥ धनाश्री ॥ आपुन चढे कदम पर धाई। वदन सकोरि भौंह मोरतहै हांक देत करि नंद दोहाई ॥ जाइ कहाँ मैयाके आगे लेहु सवै मिलि मोहि वधाई । मोको जुरि मारन जब आई तब दीनी गेंडरी फटिकाई ॥ ऐसेकरि मोको तुम पायो मनौ इनकी मैं करौं चेराई । सूरश्याम वे दिन विसराए जंब बांधे तुम उखललाई ॥ ८३ ॥ आसावरी ॥ इहँई रहौ तौ वदौं कन्हाई । आपुगई यशुमतिहि सुनावन देगई श्यामहि नंद दोहाई ॥ महरि मथति दधि सदन आपने एहि अंतर युवती सब आई । चितै रही युवतिनको आवत कहां आवति, भीर लगाई ।। मैं जानति तुमको हार खिझई ताते सब उरहन लै धाई। सूरदास रस भरी ग्वालिनी ऐसो टीठ कियो सुत माई||८४॥विलावल|सुनह महरि तेरो लाडिलो आति करत अचगरीयमुन भरन जल हम गई तहां रोकत डगरीशिरते नीर ढराइ देत फोरी सब गगरी। गेंडुरि दई फटकारिकै हरि करतहै लँगरी। नित प्रति ऐसेई ढंग करै हमसों कहै अगरी।अव वसवास नहीं वनै यहि तुव वजनगरी।आपु गयोचढ़ि कदमही चितवत रहि सिगरी । सूरश्याम ऐसेही सदा हमसों करै झगरी ॥८६॥ रामकली ॥सुतको वराज राखहु महरािडगर चलन नदेत काहुहि फोरि डारत ढहरिश्यामके गुण कछु नजानति जाति हमसों गहरि । इहै लालचगाइ दशलिए वसतहै व्रज थहरि ।। यमुनतट हरि देखे ठाढे डरनि आवै वहरि । सूरझ्यामहि नेक वरजौ करतहै अतिचहरि ॥८६॥ तुमसों कहति सकुचति महरिराश्यामके गुण नहीं जानति जाति हमसों गहरिनिकहूं नहिं सुनति श्रवणनि करति है हम चहाराजल भरन को उ नहीं पावति रोकि राखत डहरिअति अचगरी करत मोहन फटकि गेंडुरी दहार । सूरप्रभुको कहा सिखयो रिसनि युवती झहरि ।। ८७ ॥ धनाश्री ॥ कहा करौं मोसों कही तुमही । जोपाऊँ तो तुमहि देखाऊं हाहा करिहौ अवहीं।तुमहूं गुण जानतिहौ हरिके ऊखल बांधे जवहीं सँटिया लै मारन जब लागी तब वरज्यो मोहिं सवहीं। लरिकाईते करत अचगरी मैं जाने गुण तवहीं । सरहाल कैसे कारहों परि आव धौ हरि अवहीं ।। ८८॥ रागसारंग ।। मैं जानतिहौं ढीठ कन्हैया। आवनती घर देहु श्यामको जैसी करौं सया।।मोसों करत ढिठाई मोहन मैं वाकीही मैया । और न काहूको वह माने कछु सकुचत वल भैया ॥ अब जो जाउँ कहां तेहि पावों कासों देइ धरैया । सूरश्याम दिन दिन लंगर भयो दूरि करै लँगरैया ।। ८९॥ राग मूहा ।। युवति बोधि सब घरहि पठाई। यह अपराध मोहिं बकसौरी इहै कहतिहाँ मेरी माई।इतते चली घरनि सब गोपी उतते आवत कुँवर कन्हाई॥ वीचहि भेट भई युवतिन हरि नैनन जोरत गए लजाई । जाहु कान्ह महतारी टेरति बहुत बड़ाई कार हम आई । सूरश्याम मुख निरखि निरखि हँसि मैं कैहौं जननी समुझाई॥९० ॥ नट ॥ सकुचत J ... - - - - - -- -