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पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२९७

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सूरसागर।


गए घरको श्याम। द्वारहीते निरखि देख्यो जननी लागी काम॥ इहै वाणी कहति मुखते कहाँ गयो कन्हाई॥ आप ठाढ़े जननि पाछे सुनतहै चितलाई। जल भरन युवती नपावैं घाटरोकत जाइ। सूर सबके फोरि गागार श्याम गयो पराइ॥९१॥ नटनारायण ॥ यशुमति यह कहिकै रिसपावति। रोहिणि करति रसोई भीतर कहि कहि तिनहि सुनावति॥ गारी देत बहू वेटिनिको वै धाई ह्यां आवति। हाहा करति सबनिसों मैंही कैसेह्वं खूट छँडावति॥ जाति पांतिसों कहा अचगरी यह कहि सुतहि धिरावति। सूरश्यामको सिखवत हारी मारेहु लाज न आवति॥९२॥ सारंग ॥ तू मोहींको मारन जानति। उनके चरित कहा कोउ जानै उनहि कही तू मानति॥ कदमतीरते मोहिं बुलायो गढ़ि गढ़ि बातैं बानति। मटकत गिरी गागरी शिरते अबऐसी बुधि ठानति॥ फिरि चितई तू कहां रह्यो कहि मैं नहि तोको जानति। सूरसुतहि देखतही रिसगइ मुख चूमति उर आनति॥९३॥ गौरी ॥ झूठहि सुतहि लगावति खोरि। मैं जानति उनके ढंग नीके वातैं मिलवति जोरि। वे यौवन मदकी सब माती कहां मेरो तनक कन्हाई। आपुहि फोरि गागरी शिस्ते उरहन लीन्हे आई॥ तू उनके ढिग जाति कितहिहै वै पापिनि सब सारि। सूरश्याम अब कह्यो मानि तू हैं सब ढीठ गुवारि॥९४॥ मोहन ॥ मोहन बाल गोविंदा पाई मेरो कहा जानै बोलि। उरहनलै युवती सब आवति झूँठी बतियाँ जोरि॥ कोऊ कहति गेंडुरी मेरी लीन्ही कोऊ कहति गगरी गयो फोरी। कोऊ चोली हार बतावति कान्हा तेरा भोरी॥ अब आवै जो उरहन लैकै तौ पठऊं मुँहमोरी। सूरकहाँ मेरो तनक कन्हाई आपुन यौवन जोरी॥९५॥ कान्हरो ॥ ब्रज घर घर यह बात चलावत। यशुमतिको सुत करत अचगरी यमुना जल कोउ भरन न पावत॥ श्याम वरन नटवर वपुकाछे मुरली राग मलार बजावत। कुंडल छवि रवि किरन हूंते द्दुति मुकुट इंद्र धनुते सोभावत॥ मानत काहुन करत अचगरी गागरि धरि जल भुइँ ढरकावत। सूरश्यामको मात पिता दोउ ऐसे ढँग आपुनहिं पढावत॥९६॥ गौरी ॥ करत अचगरी नंदमहरको। सखालिये यमुनातट बैठो निवहत नाहिं सब लोग डहरको॥ कोऊ खिझो कोऊ कितने वरजो युवतिनके मन ध्यान। मन क्रम वचन श्यामसुंदरते और नजानति आना॥ इह लीला सब श्याम करतहै ब्रज युवतिनके हेत। सूर भजे जेहि भाव कृष्णको ताको सोइ फल देता॥ यमुनाजल कोउ भरन नपावै। आपुन बैठे कदम डार चढि गारी दैदै सबनि बोलावै॥ काहूकी गगरी गहि फोरत काहू शिरते नीरढरावै। काहूसों करि प्रीति मिलतुहै नैनसैनदे चितहि चुरावै॥ वरवसही अकवारि भरत धरि काहूसों अपनो मन लावै। सुरश्याम अति करत अचगरी कैसेहुं काहू हाथ नआवै॥९८॥ धनाश्री ॥ ब्रजग्बैंडे कोउ चलन न पावत। ग्वाल सखा संग लीने डोलत दैदै हांक जहां तहां धावत॥ काहूकी गेंडुरी फटकारत काहूकी गगरी ढरकावत॥ काहूको गारीदै भाजत काहूको उठि अंकम लावत। काहू नहिं मानत ब्रजभीतर नंदमहरको कुँवर कहावतासूरश्याम नटवर वषु काछे यमुनाके तट मुरली बजावत॥९९॥ टोडी॥ गोकुलके ग्वैडे एक सांवरो सो ढोंग माई आँखियन के पैंडे पैठि जीके पैंडे परयौहै। कल न परत छन गृह भयो सम बन तन मन धन प्राण सरवस हरयोहै भवन न भावै माई आंगन न रह्यो जाइ करै हाइ हाइ देखौ जैसे हाल करयोहै। सूरदास प्रभु नीके गावत मधुर सुर मानहु मुरलीमें पियूषरस भरयौहै॥९००॥ राग नट ॥ राधा सखियन लई बोलाइ। चलहु यमुनाजलीह जैये चलीं सब सुखपाइ॥ सबनि एक एक कलस लीन्हो तुरत पहुँची जाइ। तहां देख्यो श्याम सुंदर कुँवरि मन हरषाइ॥ नंदनंदन देखिरीझे चितैरहे चितलाइ।